देश की स्वतंत्रता के बाद जब पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ तो उस समय टीकमगढ़ एवं छतरपुर जिले की विधानसभाओं को मिलाकर टीकमगढ़ लोकसभा का निर्माण किया गया था। 1952 में अस्तित्व में आई टीकमगढ़ लोकसभा अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी। इस सीट से पहली बार छतरपुर जिले के रामसहाय/ मोती लाल मालवीय सांसद चुने गए थे। 1952 से 1977 तक आरक्षित रहने के बाद इस सीट को अनारक्षित किया गया था।
कब-कब बदला नाम: 1952 में अस्तित्व में आई टीकमगढ़ लोकसभा को पहली पंचवर्षीय के बाद 1957 में बदल कर खजुराहो कर दिया गया था। इसके बाद दूसरी पंचवर्षीय होने के साथ ही एक बार फिर से इसका नाम बदल दिया गया और 1962 में इसका नाम फिर से टीकमगढ़ लोकसभा हो गया था। इस बार टीकमगढ़ लोकसभा 3 पंचवर्षीय तक अस्तित्व में रही और 1977 में एक बार फिर से हुए परिसीमन में इसका नाम खजुराहो कर दिया गया था। 1977 से 2004 तक यह सीट खजुराहो लोकसभा ही रही। इसके बाद हुए परिसीमन में 2009 में टीकमगढ़ एवं खजुराहो दोनो को अलग-अलग लोकसभा का दर्जा दे दिया गया।
हर बार आरक्षित रही सीट: टीकमगढ़ लोकसभा सीट को लेकर एक यह भी संयोग है कि यह पूरे समय आरक्षित रही है। स्वतंत्रता के बाद जब पहली बार यह अस्तित्व में आई तो उस समय भी आरक्षित थी। इसके बाद जब 1977 से 2004 तक खजुराहो में रही तभी यह अनारक्षित रही है। इसके बाद जब 2009 में परिसीमन किया गया और टीकमगढ़ एवं खजुराहो दोनों सीटों को अलग किया तो खजुराहो को अनारक्षित एवं टीकमगढ़ को आरक्षित श्रेणी में रखा गया। इस प्रकार यह सीट स्वतंत्रता से लेकर अब तक आरक्षित श्रेणी में ही बनी हुई है।
यह विधानसभाएं थी शामिल: 1977 से 2008 तक खजुराहो लोकसभा में टीकमगढ़ जिले की टीकमगढ़, खरगापुर, निवाड़ी एवं जतारा विधानसभा तथा छतरपुर जिले की छतरपुर, महाराजपुर, चंदला और बिजावर विधानसभाओं को शामिल किया गया था। 2008 में परिसीमन के बाद जब टीकमगढ़ एवं खजुराहो लोकसभा को अलग-अलग किया गया तो टीकमगढ़ लोकसभा में टीकमगढ़ जिले की टीकमगढ़, जतारा, पृथ्वीपुर, निवाड़ी एवं खरगापुर एवं छतरपुर जिले की छतरपुर, महाराजपुर एवं बिजावर को शामिल किया गया है। वहीं खजुराहो लोकसभा सीट में छतरपुर जिले की चंदला एवं राजगढ़, पन्ना जिले की पवई, गुन्नौर एवं पन्न तथा कटनी जिले की विजयराघवगढ़, मुड़वारा एवं बहौरीबंद को शामिल किया गया है।