लॉकडाउन के अंदर बनाई गई कैलीग्राफी बिकने के बाद आनी वाली राशि को कोरोना महामारी में मदद के लिए सीएम फंड में भेजा जाएगा। संस्थान ने इन कैलीग्राफी को सोशल मीडिया पर ऑन लाइन बिक्री के लिए डाला है।
मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान प्राचीन किताबों के लिए ही नहीं है, बल्कि कैलीग्राफी के लिए भी मशहूर है। ऐसे में संस्थान अब इस हुनर को शहर के विद्यार्थियों को भी दे रहे हैं। लॉकडाउन से पहले संस्थान में प्रति दिन कक्षाएं लगाई जाती थी।
मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान एकमात्र सरकारी संस्थान है जहां विशेष पुस्तकों, ग्रन्थों का संग्रह केन्द्र ही नहीं है बल्कि यहां सूफिज्म, उर्दू, अरबी एवं फारसी साहित्य, केटेलाग्स, यूनानी चिकित्सा, स्वानेह हयात (आत्म कथा), मध्य कालीन इतिहास, स्वतन्त्रता अभियान पर साहित्य, ख़त्ताती, रीमिया, कीमिया, सीमिया, दर्शन, तर्कशास्त्र, विधि शास्त्र, विज्ञान एवं शिकार आदि विषयों पर असीम साहित्य उपलब्ध है।
इस संस्थान ने ना केवल गिनीज बुक में स्थान दर्ज कराया है बल्कि कई अन्य रिकॉर्ड भी अपने नाम दर्ज किए हैं। यह संस्थान अपने दुर्लभ एवं अद्भुत साहित्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हिस्टोरियोग्राफी, ओरियन्टोलोजी एवं इस्लामिक स्टडीज पर अमूल्य एवं दुर्लभ सामग्री भी यहां संग्रहित है। इनके कारण इसकी ख्याति अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर है।
ताकि विद्यार्थी आगे बढ़ सके
कैलीग्राफी का फन यूं तो टोंक में सालों से है, लेकिन नई पीढ़ी को अब उर्दू, अरबी व फारसी के साथ संस्कृत में भी कैलीग्राफी को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। टोंक की कैलीग्राफी देशभर में मशहूर है।
– डॉ. सौलत अली खां, निदेशक मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान टोंक