scriptउर्दू, अरबी व फारसी के बाद अब संस्कृत में भी कैलीग्राफी | After Urdu, Arabic and Persian, now calligraphy in Sanskrit too | Patrika News
टोंक

उर्दू, अरबी व फारसी के बाद अब संस्कृत में भी कैलीग्राफी

विश्व में प्रसिद्ध है टोंक का शोध संस्थानकैलीग्राफी आर्ट में आ रहा है नया रंगविद्यार्थियों को दे रहे हैं ज्ञानजलालुद्दीन खानटोंक. टोंक की मशहूर कैलीग्राफी आर्ट में नया रंग आ रहा है। अब तक कैलीग्राफी उर्दू, फारसी व अरबी शब्दों मेें की जाती थी, लेकिन अब टोंक में संस्कृत में भी ये कला की जा रही है। इसकी शुरुआत देशभर में मशहूर मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में की गई है।

टोंकJun 05, 2020 / 08:15 pm

jalaluddin khan

उर्दू, अरबी व फारसी के बाद अब संस्कृत में भी कैलीग्राफी

उर्दू, अरबी व फारसी के बाद अब संस्कृत में भी कैलीग्राफी

उर्दू, अरबी व फारसी के बाद अब संस्कृत में भी कैलीग्राफी
विश्व में प्रसिद्ध है टोंक का शोध संस्थान
कैलीग्राफी आर्ट में आ रहा है नया रंग
विद्यार्थियों को दे रहे हैं ज्ञान
जलालुद्दीन खान
टोंक. टोंक की मशहूर कैलीग्राफी आर्ट में नया रंग आ रहा है। अब तक कैलीग्राफी उर्दू, फारसी व अरबी शब्दों मेें की जाती थी, लेकिन अब टोंक में संस्कृत में भी ये कला की जा रही है। इसकी शुरुआत देशभर में मशहूर मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में की गई है।
टोंक में कैलीग्राफी की शुरुआत 1867 में टोंक रियासत के तीसरे नवाब मोहम्मद अली ने की थी। तब से लेकर अब तक कैलीग्राफी उर्दू, अरबी व फारसी में की जाती रही है, लेकिन कोरोना वायरस महामारी में लगाए गए लॉकडाउन में संस्थान के निदेशक डॉ. सौलत अली खां ने इसमें कुछ नया रंग लाने की कोशिश की।
उन्होंने लॉकडाउन में कला विषय के विद्यार्थियों से ऑन लाइन कैलीग्राफी बनाने को कहा। इसमें कहा गया कि विद्यार्थी संस्थान के कैलीग्राफिस्ट मुरलीधर अरोड़ के सान्निध्य में संस्कृत में भी कैलीग्राफी बनाए। इसके बाद ऑन लाइन शहर के 15 विद्यार्थी इससे जुड़े और उन्होंने उर्दू के साथ संस्कृत में भी कैलीग्राफी बनाई।
दूसरी ओर संस्कृत व हिन्दी में कैलीग्राफी बनाने शहर में एकमात्र मुरलीधर है, जो विद्यार्थियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। वे उर्दू, अरबी और फारसी में कैलीग्राफी करते हैं, लेकिन अब उन्होंने संस्कृत में भी इसकी शुरुआत की है।
सीएम फंड में जाएगी राशि
लॉकडाउन के अंदर बनाई गई कैलीग्राफी बिकने के बाद आनी वाली राशि को कोरोना महामारी में मदद के लिए सीएम फंड में भेजा जाएगा। संस्थान ने इन कैलीग्राफी को सोशल मीडिया पर ऑन लाइन बिक्री के लिए डाला है।
एक शब्द को लिखते हैं कई तरीके से
मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान प्राचीन किताबों के लिए ही नहीं है, बल्कि कैलीग्राफी के लिए भी मशहूर है। ऐसे में संस्थान अब इस हुनर को शहर के विद्यार्थियों को भी दे रहे हैं। लॉकडाउन से पहले संस्थान में प्रति दिन कक्षाएं लगाई जाती थी।
इसमें एक दर्जन विद्यार्थी केलीग्राफ का हुनर सीखते हैं। केलीग्राफ में एक शब्द को 50 अलग-अलग तरीके से लिखा जाता है। कागज, कपड़ा, चमड़ा, लकड़ी, कांच, दाल, चावल, बोतल में बेहतरीन केलीग्राफ की जाती है।
असीम साहित्य भी उपलब्ध है
मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान एकमात्र सरकारी संस्थान है जहां विशेष पुस्तकों, ग्रन्थों का संग्रह केन्द्र ही नहीं है बल्कि यहां सूफिज्म, उर्दू, अरबी एवं फारसी साहित्य, केटेलाग्स, यूनानी चिकित्सा, स्वानेह हयात (आत्म कथा), मध्य कालीन इतिहास, स्वतन्त्रता अभियान पर साहित्य, ख़त्ताती, रीमिया, कीमिया, सीमिया, दर्शन, तर्कशास्त्र, विधि शास्त्र, विज्ञान एवं शिकार आदि विषयों पर असीम साहित्य उपलब्ध है।
गिनीज बुक में स्थान दर्ज
इस संस्थान ने ना केवल गिनीज बुक में स्थान दर्ज कराया है बल्कि कई अन्य रिकॉर्ड भी अपने नाम दर्ज किए हैं। यह संस्थान अपने दुर्लभ एवं अद्भुत साहित्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हिस्टोरियोग्राफी, ओरियन्टोलोजी एवं इस्लामिक स्टडीज पर अमूल्य एवं दुर्लभ सामग्री भी यहां संग्रहित है। इनके कारण इसकी ख्याति अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर है।

ताकि विद्यार्थी आगे बढ़ सके
कैलीग्राफी का फन यूं तो टोंक में सालों से है, लेकिन नई पीढ़ी को अब उर्दू, अरबी व फारसी के साथ संस्कृत में भी कैलीग्राफी को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। टोंक की कैलीग्राफी देशभर में मशहूर है।
– डॉ. सौलत अली खां, निदेशक मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान टोंक

Home / Tonk / उर्दू, अरबी व फारसी के बाद अब संस्कृत में भी कैलीग्राफी

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो