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राजस्थान में यहां पहाडिय़ों में उपजा अरब का खजूर, मेहमान पौधे को रास आई धरा और आबोहवा

सरकार की ओर से 90 फीसदी तक अनुदान भी देने से भी किसान इसे अपनाने मे रूचि दिखा रहे हैं।
 

टोंकApr 25, 2019 / 05:23 pm

pawan sharma

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राजस्थान में यहां पहाडिय़ों में उपजा अरब का खजूर, मेहमान पौधे को रास आई धरा और आबोहवा

आवां.तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद आवां की पहाडिय़ों में खजूर की खेती फल देने लगी है। इन मेहमान पौधों को क्षेत्र की आबोहवा और धरा रास आने लगी हैं। आवां-चांदली सडक़ और नयागांव गोठड़ा के खेत में खजूर के पौधों में फलोत्पादन हो रहा है।
राज्य सरकार ने 2007 में खजूर की पौध संयुक्त अरब अमीरात से राजस्थान में लाकर इस पर अनुसंधान प्रारम्भ किया था, जिसके आशाजनक परिणाम आने लगे हैं। कृषि में हो रहे इस प्रकार के नवाचारों को अपनी बंजर भूमि में अपना कर जिले के किसान की आय बढऩे के साथ तकदीर भी बदल सकती है।
खजूर है कैलोरी का भण्डार
खजूर, राज्य के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है। खजूर से प्रति किलोग्राम 3100 कैलोरी ऊर्जा मिलने से इसे सर्वाधिक ऊर्जावान माना गया है। अब इसकी अजूवा किस्म पर नवाचार हो रहा है।
कुरान के अनुसार इसे सबसे पवित्र माना गया है। अजान के बाद इससे रोजा खोलने को अतिशुभ माना गया है। इसके फल गर्मी में पानी की कमी को पूरा करेगें। दो खजूर से दिन भर की प्यास की तृप्ति हो जाती है।
एक पौधे से 70 साल तक कमाई
टोंक कृषि अधिकारी शिवराज जांगिड़ ने बताया कि खजूर राज्य और जिले के किसान की आय बढ़ाने का अच्छा जरिया बन सकता है। इसका एक पौधा लगभग 50 से 250 किलोग्राम तक फल देता है, जो 70 साल तक उपज देने मे सक्षम है।

जीरो से बन रहे हैं हीरो
खजूर का 37 प्रतिशत मिस्र में तथा पाकिस्तान में 7 फीसदी उत्पादन हो रहा है। राज्य के जैसलमेर, जौधपुर, नागौर, बाड़मेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर और चुरू के साथ पश्चिमी रेगिस्तान में इसकी अच्छी खेती की जा रही है। विगत वर्षों में टोंक के किसानों की भी इस ओर रूचि बढ़ी है।

रास आई है हमारी धरा
आवां में खजूर के बरही किस्म के 140 मादा और 5 नर पौधे सत्र 2016 में रोपे गए थे। पिछले वर्ष इनमें 20 प्रतिशत तक उत्पादन हुआ था, जो इस वर्ष बढकऱ 8 0 से 90 फीसदी तक हो गया है।
परागण के बाद इनमें आ रहे फलों का देखने को आस-पास के किसान उमडऩे लगे हैं। बरही किस्म के खजूर के पीले रंग के कच्चे फलों में भी मिठास होती है। स्वादिस्ट होने के साथ इसमे पौस्टिकता का खजाना भरा है।
जयपुर स्थित विभाग के कृषि अधिकारी निरंजन सिंह राठौड़ के अनुसार खजूर की सघई, जामली, खलाश, खुनेजी, मैडजूल,जगलूल, खदरावी, अल- इनसिटी और नर किस्म की धनामी किस्में भी राज्य की धरा को रास आई है।
इसको लेकर सरकार की ओर से 90 फीसदी तक अनुदान भी देने से भी किसान इसे अपनाने मे रूचि दिखा रहे हैं। इसके बावजूद व्यापक प्रचार-प्रसार की जरूरत है।


बंजर में आई बहार
कम पानी व लागत और बंजर भूमि में भी खजूर के फलने-फूलने से राज्य की गर्म जलवायु इसे बेहद रास आई है। मध्यम दर्जे की ऊंचाई के इसके पेड़ पर टहनियां कांटेदार होने से सुरक्षा की चिन्ता भी नहीं करनी पड़ती।
नील गाय इत्यादि जंगली जानवर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा पाते। आवां के चांदली रोड पर मूड़ा जो किसी भी फसल के लिए उपयोगी नहीं थी, खजूर के लिए वरदान साबित हुई है। वीरान पड़ी शुष्क धरा पर खजूरों की लहराती फसल से बहार आई है।

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