यह सोचकर चितिंत है। यह स्थिति शहर के दशहरा मैदान के पास स्थित गाडिय़ा लुहार परिवारों की है, जो लॉक डाउन का वितरित प्रभाव झेल रहे है।
लुहार बस्ती के एक परिवार के मुखिया नाथू लुहार ने बताया कि उनकी बस्ती में गाडिय़ा लुहार सहित जोगी जाति के परिवारों में करीब 150 से 200 लोग रहते है। इनमें गाडिय़ा लुहार जाति लोहे के चम्मच, चिमटा, चाकू, हसिया, कुल्हाड़ी सहित उपकरण बनाते है,
जिन्हें बेचकर अपना जीवन निर्वाह करते है, लेकिन गत रविवार जनता बंद के बाद से उनकी बस्ती व खुली दुकान में एक भी ग्राहक नहीं आया। नाथू लुहार ने बताया कि ग्राहक नहीं होने से उन्हें एक पैसा नहीं कमाया। क्योंकि सरकार ने केवल जरुरी सामानों की दुकानों को खोलने की अनुमति दी है।
लिहाजा उनके पास जमा पैसों से रसोई खर्च चल रहा है। लेकिन वह पैसा भी परिवार के खर्च में खत्म हो रहा है। ऐसे में वे खाली बैठे वक्त वे अपनी पत्नी सुआ के साथ औजार बना रहे है। उन्होंने बताया कि खाली वक्त में बनाए औजार से उन्हें बंद खत्म होने के बाद आमदनी होगी।
इसी आस में वे अपना काम लगातार कर रहे है। इसी प्रकार जोगी परिवार की महिला अमरी देवी ने बताया कि वे भी खाली वक्त छाबड़ी बना रही है। उन्हें भी राशन सामग्री के लिए तरसना पड़ रहा है।
मदद की आस
दोनों बस्ती के लोगों ने पत्रिका को बताया कि वे दिहाड़ी श्रमिक है। जो रोज कमाकर अपना घर चलाने वाले है, लेकिन गत दिनों से ग्राहकी नहीं होने से उनके साथ आर्थिक संकट उत्पन्न हो रहा है। हांलाकि भाजपा मण्डल व संघ कार्यकर्ताओं ने पिछले दिनों बस्ती में जाकर आटा, तेल व मिर्च-मसालों के पैकेट वितरीत किए।
लेकिन बस्ती के लोगों को कहना है कि पांच किलों आटे से उनका एक वक्त का भोजन ही बन पाता है। दूसरे वक्त के लिए उन्हें जुगाड़ करना पड़ रहा है। बंद के दौरान आर्थिक संकट का सामना करे रहे गाडिय़ां लुहार परिवारों को अपने जीवन-निर्वाह की चिंता सता रही है। लेकिन फिलहाल सरकारी स्तर पर उन्हें किसी प्रकार की मदद नहीं मिली है।
आर्थिक संकट मंडराया
इसी प्रकार शहर के पटेल नगर स्थित दर्जनों सिकलीगर परिवारों के समक्ष भी लॉक डाउन को लेकर आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। सिकलीगर परिवार के पुरुष व महिला शहर में घूमकर पुराने कपड़ों के बदले नए बर्तन देते है।
वहीं इन कपड़ों को बेचकर अपनी जीवन निर्वाह करते है। लेकिन लॉक डाउन के बाद सिकलीलगर लोग का धंधा बंद पड़ा है। इन्हीं की भांति निर्माण श्रमिकों को भी बंद से परेशान होना पड़ रहा है।