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टोंक

यादों में आज भी जवां है आपातकाल का दर्द

देश में लगे आपातकाल के आंदोलन में टोंक भी पीछे नहीं रहा। जहां टोंक की जेल में जिले के अलावा जयपुर तथा सवाईमाधोपुर जिले के लोगों को बंदी बनाकर रखा गया। इस दौरान काफी यातनाएं दी गई।

टोंकJun 26, 2020 / 07:34 am

Vijay

यादों में आज भी जवां है आपातकाल का दर्द

यादों में आज भी जवां है आपातकाल का दर्द

पवन शर्मा

टोंक. देश में लगे आपातकाल के आंदोलन में टोंक भी पीछे नहीं रहा। जहां टोंक की जेल में जिले के अलावा जयपुर तथा सवाईमाधोपुर जिले के लोगों को बंदी बनाकर रखा गया। इस दौरान काफी यातनाएं दी गई। खाने में जली रोटिया व दाल में कंकड होते थे। आपातकाल को 45 साल हो गए, लेकिन आज भी मीसा बंदियों की आंखों में आपातकाल की पीड़ाओं का खौफ है। टोंक की जेल में निवाई के रहने वाले पूर्व सरकारी मुख्य सचेतक रहे महावीर प्रसाद जैन भी बन्द रहे, जिनको निवाई के बस स्टैण्ड से बस में सवार होते समय यह कहकर मीसा में गिरफ्तार कर लिया कि आपने नगर पालिका में सरकार के खिलाफ बोला है।

उस दौरान टोंक जेल में बंद महावीर प्रसाद जैन का कहना है कि शुरुआत में तो जली रोटियां व पानी की तरह की दाल दी गई, लेकिन जब जेल प्रशासन ने नहीं सुनी तो जेल के गेट बंद कर जेल में ही जेलर को नीम के पेड़ से बांध दिया। इतना ही नहीं विद्यार्थियों को जेल से परीक्षा दिलाने के लिए भी आंदोलन करना पड़ा था। जैन ने आपातकाल की यादों को ताजा करते हुए बताया कि जहां मजबूत लोग थे, वहां कोई ज्यादा यातनाएं नहीं दी जाती थी। उन्होंने बताया कि उनको अजमेर जेल में शिफ्ट किया गया था।
जैन ने कहा कि आपातकाल में सरकार के खिलाफ बोलना ही जुर्म था, हालात इतने खराब थे कि रेलवे स्टेशन पर जैसे ही नसबंदी के लिए परिवार कल्याण की गाडी दिखती थी, वैसे ही लोग थालियां बजाकर एक दूसरे को सूचना दे दे थे. उन्होनें बताया कि राज्य की कई जेलों में 17 महीने आपातकाल में बिताए।
मीडिया पर थी सेंसरशिप लागू
पुरानी टोंक निवासी व सुभाष बाजार टोंक में घड़ी की दुकान लगाने वाले श्याम बाबू नामा भी आपातकाल में टोंक जेल में बंद रहे थे। भारत मे तो मीडिया पर भी सेंसरशिप लागू होने के कारण वहीं छपता था, जो सरकार चाहती थी। उन्होंने बताया कि कोई भी जेल में पत्र आता था तो कोड वर्ड में होता था, क्योंकि सम्बधित को देने से पहले जेल प्रशासन द्वारा पत्र को खोल पढ़ा जाता था पडऩे के बाद दिया जाता था।
बाजारों की छतों पर भीड़ जमा हो गई

आपातकाल में जेल गए ताज कॉलोनी निवासी गोपाल पटवारी का कहना है कि टोंक जेल में बंद मीसा बंदियों के बाद घंटाघर पर सत्याग्रह करते हुए कोतवाली टोंक पहुंच कर अपनी गिरफ्तारियां दी थी, जिस दौरान सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ आंदोलन को देखने के लिए बाजारों की छतों पर भीड़ जमा हो गई थी। उन्होंने बताया कि कोतवाली में हवालात में भी शौच के लिए हथकड़ी डाल कर दो को ले जाया जाता था, पटवारी ने बताया कि कोर्ट में माफीनामा लिखने को कहा, जब मना किया तो जेल भेज दिया। जेल में टोंक, जयपुर व सवाईमाधोपुर के 100 कार्यकर्ता बन्द थे।
नौकरी छोड़ 19 माह जेल में रहे

गांधी पार्क टोंक निवासी स्वर्गीय रामरतन बुन्देल की धर्मपत्नी भगवती देवी ने बताया कि उस वक्त भय का माहौल था। साथ ही लोग एक दूसरे से बात भी नहीं करते थे। 25 जून 1975 के दिन इतिहास का काला अध्याय लिखा गया था, जब पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा की गई और विपक्ष के सभी नेताओं व स्वयंसेवकों को जेलों में बंद कर दिया गया। भगवती देवी ने बताया कि उनके पति ने तो आपातकाल मेें अपनी कॉलेज की सरकारी नौकरी तक को छोड़ दिया था। बुंदेल ने भी आपातकाल के समय 19 महीने की जेल काटी थी।
लिखा पत्र तो हुई गिरफ्तारी
आपातकाल के दौरान टोंक जिले के फूलेता निवासी माकपा जिला संयोजक रहे राजराजेश्वर सिंह ने इमरजेंसी का विरोध करते हुए इंदिरागांधी को पत्र लिखा था। जिनको भी पुलिस गिरफ्तार करके टोंक ले आईे तथा मकान को सीज करके परिवार वालों को भी बाहर निकाल दिया था। सिंह बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए जो जिला परिषद सदस्य भी रहे चुके।

जेल में रहकर दी परीक्षा
आपातकाल में टोंक जिले के टोडारायसिंह से विधायक रहे पूर्व मंत्री नाथूसिंह गुर्जर व टोंक जिले के कुछेक विद्यार्थी सहित 30 छात्रों ने बीए फाइनल की जयपुर जेल की बैरक में रह करके ही महाराजा कॉलेज में अपनी परीक्षा दी थी। जयपुर जेल में बंद टोंक के विद्यर्थियों का कहना है कि उनके साथ पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भैरोसिंह शेखावत, पूर्व मंत्री स्वर्गीय भंवरलाल शर्मा, कैलाश मेघवाल, जेसै कई दिग्गज लोग शामिल थे।
घंटाघर से हुई गिरफ्तारी
सोनवा निवासी भंवरलाल गुर्जर आपातकालीन सत्याग्रह की चर्चा करते हुए कहते है कि उस समय घण्टाघर पर सत्याग्रह करते समय गिरफ्तारी हुई थी। उन्होंने बताया कि उस समय सरकार के खिलाफ कोई बोल नही सकता था। अखबारों में भी सेंसर होकर ही खबर छपती थी।

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