जबकि लॉक डाउन से पहले विदेशी स्कॉलर के दल मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में आते रहते थे। आखरी दल लॉक डाउन से पहले फ्रांस से आया था। इसमें 20 लोग शामिल थे, लेकिन कोरोना वायरस महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन से देशभर से आने वाले स्कॉलर तो रुक ही गए।
हालांकि अभी कोरोना महामारी में कुछ राहत है, लेकिन विदेशी स्कॉलर्स नहीं आ रहे हैं। लॉकडाउन खुलने के बाद तीन महीनों में महज एकाध स्कॉलर्स ही भोपाल से टोंक आए हैं। जबकि पहले मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में विदेशियों का आना-जाना लगा रहता था।
यहां रखे ग्रंथों से जानकारी लेने के लिए पिछले तीन सालों में ही जर्मनी, फ्रांस, दुबई, सऊदी अरब अमीरात, अज्जेबिकिस्तान, इटली, तर्की, रसिया, जापान, नेपाल, अमेरिका तथा इंग्लैण्ड से स्कॉलर आते आए थे। मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान को देखने के लिए यूं तो देश-विदेश से लोग आते रहते हैं, लेकिन इनमें कुछ हस्तियां भी है। इनमें देश के उपराष्ट्रपति रह चुके हिदायतउल्ला खां, हामिद अंसारी, भैरूंसिंह शोखावत तथा केन्द्रीय मंत्री नूरुलहसन समेत कई मंत्री यहां आ चुके हैं।
इस लिए आते हैं विदेशी
प्रदेश में टोंक का मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान एकमात्र सरकारी संस्थान है, जहां विशेष पुस्तकों, ग्रन्थों का संग्रह केन्द्र ही नहीं है बल्कि यहां सूफिज्म, उर्दू, अरबी एवं फारसी साहित्य, केटेलाग्स, यूनानी चिकित्सा, स्वानेह हयात (आत्म कथा), मध्य कालीन इतिहास, स्वतन्त्रता अभियान पर साहित्य, खत्ताती, रीमिया, कीमिया, सीमिया, दर्शन, तर्कशास्त्र, विधि शास्त्र, विज्ञान एवं शिकार आदि विषयों पर असीम साहित्य उपलब्ध है।
यह संस्थान अपने दुर्लभ एवं अद्भुत साहित्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हिस्टोरियोग्राफी, ओरियन्टोलोजी एवं इस्लामिक स्टडीज पर अमूल्य एवं दुर्लभ सामग्री भी यहां संग्रहित है। इनके कारण इसकी ख्याति अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर है। संस्थान में संधारित धरोहर में 8053 दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थ, 27785 मुद्रित पुस्तकें , 10239 कदीम रसाइल, 674 फरामीन एवं भूतपूर्व रियासत टोंक के महकमा शरीअत के 65000 फैसलों की पत्रावलियों के अतिरिक्त हजारों अनमोल अभिलेख, प्रमाण-पत्र, तुगरे और वसलियां उपलब्ध हैं।
संस्थान में एक लाख पैंतीस हजार पुस्तकें हैं। यहां हिन्दू धर्म ग्रन्थ रामायण, महाभारत, भगवद् गीता, सिंहासन बत्तीसी आदि की भी फारसी भाषा में अनुवादित पुस्तकें मौजूद हैं। यहां ज्योतिष, भूगोल, जीव विज्ञान, इतिहास, सूफिज्म आदि की पुस्तकें मौजूद हैं।
नवाब अली खां ने की थी शुरुआत
बुनियादी तौर पर इस संस्थान की किताबों को टोंक रियासत के तीसरे शासक नवाब मोहम्मद अली खां ने एकत्र किया था। उन्हें तात्कालीन अंग्रेज सरकार ने बनारस भेज दिया था। नवाब मोहम्मद अली खां साहित्य के संग्रह एवं इसके अध्ययन में अत्यधिक रुचि रखते थे एवं मशरिकी उलूम के विद्वान थे।
इसके परिणामस्वरूप वहां निवास के दौरान उन्होंने अपने निजी आर्थिक साधनों से मशरिकी उलूम पर महत्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रन्थ एकत्रित किए। यह मूल्यवान संग्रहालय जिला सईदिया पुस्तकालय, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के शाखा कार्यालय, टोंक से गुजरते हुए राज्य सरकार की ओर से 1978 में सृजित एक पृथक एवं स्वतन्त्र संस्थान में स्थान्तरित हुआ।
कुरान देखने भी आते हैं लोग
दुनिया की सबसे बड़ी व वजनी कुरान मजीद भी टोंक में बनाई गई है। उसे अरबी-फारसी में लिखा गया है। सावा जिला चित्तौडगढ़़ निवासी मोहम्मद शेर खां की मारफत एपीआरआई के फारसी विभाग के अनुवादक मौलाना जमील अहमद के निर्देशन में हाफिज कारी गुलाम अहमद ने कुरान मजीद लिखी है।
अब तक इस कुरान को दो लाख लोग देख चुके हैं। इसकी लागत एक करोड़ रुपए है। बनने में पूरे 2 साल लगे। कुरान 32 पन्नों की है। इसकी चौड़ाई 90 इंच, लम्बाई 125 इंच, वजन 250 किलो तथा इसका कागज 400 साल तक खराब नहीं होगा।
कोशिश कर रहे हैं नया करने की
कोशिश कर रहे हैं कि संस्थान का नाम देश-विदेश हो। लॉकडाउन के चलते देश-विदेश से आने वाले स्कॉलर पर रोक लगी है। पहले विदेशी स्कॉलर का दल आता रहता था।
– डॉ. सौलत अली खां
निदेशक, मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान टोंक