प्रसव के बाद जननी व नवजात को बैंच पर लिटाना पड़ रहा है। पलंगों को लेकर आए दिन होने वाली तकरार के बावजूद अस्पताल प्रबन्धन गम्भीर नहीं है। गंदगी व भीड़ के चलते नवजात व प्रसूताएं संक्रमण की जद में है। उल्लेखनीय है कि अस्पताल में 35 से 40 प्रसव प्रतिदिन होते हैं।
इर्द-गिर्द भीड़
जनाना वार्ड में प्रसूताओं के साथ रिश्तेदारों की भारी भीड़ रहने से जननियों व शिशुओं में संक्रमण का अंदेशा बना रहता है। नर्सेज का कहना है कि मिलने आने वालों का तांता ही प्रसूताओं का दर्द बढ़ा रहा है। सुरक्षा गार्डों के अभाव में अस्पताल के सभी वार्ड परिजनों से अटे रहते हैं।
भगवान भरोसे
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग का कार्य जिले में ठहर सा गया है। आलम है कि 79 महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता (एएनएम) के पद रिक्त हैं। कुल 254 उप स्वास्थ्य केन्द्रों में से चार दर्जन केन्द्रों में एएनएम नहीं है। ऐसे में गांवों की ‘डाक्टर’ एएनएम के अभाव में मरीज नीम-हकीमों के जाल में उलझ रहे हैं। संस्थागत प्रसव, टीकाकरण व अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रम बाधित हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ भी जच्चा व बच्चा को नहीं मिल पा रहा है।
चौंकाने वाली बात यह है कि आरसीएचओ कार्यालय में महिलाओं व शिशुओं की मृत्य-दर का लेखा-जोखा तक नहीं है। आरसीएचओ गोपाल जांगिड़ ने बताया कि प्रसव व रैफर का कोई आंकड़ा उनके कार्यालय में नहीं है। उन्होंने बताया कि वे महज टीकाकरण की ही जानकारी बात सकते हैं।
अस्पताल में नर्सेज की कमी है। रात को जननियां व शिशु की सुरक्षा भगवान भरोसे है।
विमला देवी, टोंक जनाना अस्पतालों की ओर सरकार का ध्यान नहीं है। प्रसूताएं फर्श पर लेटने को विवश हैं।
मुजिबुन्निसा, टोंक
सीमा चौधरी, जननी