उनके बाद नवाब सआदत अली खां ने भी ये परम्परा जारी रखी और आजादी तक दीपावली पर रोशनी के लिए तेल भेजा करते थे। इसके साथ ही दीपावली की शुभकामनाएं देने लवाजमे के साथ नवाब नजर बाग पैलेस से शहर में निकला करते थे।
वे बड़ा कुआं, नौशेमियां का पुल, काफला बाजार, पांचबत्ती, सुभाष बाजार तथा घंटाघर समेत अन्य इलाकों में जाते और लोगों को दीपावली की शुभकामनाएं देते थे। इसके अलावा नवाब रियासत की ओर से लोगों को दीपावली की मिठाई भी बांटी जाती थी।
वे निर्धनों का भी बराबर ख्याल रखते थे। उनके लिए कपड़े, रसद समेत अन्य सामान का वितरण कराया करते थे। ये जानकारी पूर्व टोंक रियासत के नवाब आफताब अली खां के छोटे भाई साहबजादा हामिद अली खां ने दी। हामिद खां ने बताया कि नवाबी रियासत टोंक की स्थापना 18वीं सदी में नवाब अमीरूद्दौला उर्फ अमीर खां ने की थी।
ऐसे बनी थी टोंक रियासत
हामिद अली खां ने बताया नवाब अमीर खां की संधि ईस्ट इण्डिया कम्पनी से 15 नवम्बर 1817 में हुई थी। इसमें टोंक रियासत के नवाब बनाए गए थे। इस संधि के अनुसार जो टोंक रियासत अस्तित्व में आई उसका रकबा 553 मुरबा मील था और आमदनी 56 लाख रुपए मय जागीरात थी।
इसकी आबादी उन दिनों करीब चार लाख थी। नवाब अमीर खां रियासत के साथ हिन्दू-मुस्लिम एकता को बनाए रखा। हर पर्व पर वे लोगों से मुलाकात करते। दीपावली पर खास तौर पर रोशनी कराई जाती और मिठाई बांटी जाती।
इसके लिए वे नजरबाग पैलेस स्थित तंजीम से आदेश जारी कराते थे। जहां हर निर्धन की मदद की जाती थी। इनके तंजीम में बड़े ओहदों पर हिन्दू हुआ करते थे। हामिद बताते हैं कि नवाब की ओर से दीपावली से पहले रामलीला का मंचन भी कराया जाता था।
मंदिर-मस्जिद भी कराया था एक साथ निर्माण
नवाब अमीर खां ने टोंक में कई एकता की मिसाल पेश की है। इसमें बड़ा कुआं स्थित शाही जामा मस्जिद तथा रघुनाथजी का मंदिर एक साथ बनवाया था। नवाब ने मंदिर तथा मस्जिद की नींव स्वयं रखी थी। इसके साथ ही नियमित पूजन के लिए ब्राह्मण पंडित भी रखा था।