ये दास्तां है माता जी रावता गांव के बाबू लाल मीणा की। इसके दो पुत्रों को छह माह की उम्र में ही थैलीसीमिया बीमारी ने जकड़ लिया। इससे बड़े पुत्र की ग्यारह वर्ष की उम्र में मौत हो गई। वहीं दूसरा पुत्र मनीष को भी छह वर्ष की उम्र में ही इसी बीमारी ने अपने आगोश में ले लिया। इन दिनों वह राजकीय प्राथमिक विद्यालय रावता की कक्षा 5 में अध्ययनरत है। ये बालक भी कब मौत के आगोश में समा जाए इसी को लेकर परिजनों का बुरा हाल है।
इस बालक को प्रशासन की ओर से अन्य सहायता तो दूर हर महीने एक यूनिट नि:शुल्क ब्लड के लिए भी सौ किमी का सफर तय कर
कोटा के जेके लोन चिकित्सालय जाना पड़ता है। उसके पिता बाबू लाल मीणा ने बताया कि बारां, अंता, झालावाड़ आदि जिलों में इसी बीमारी से ग्रसित बालकों को प्रशासन की ओर से हर महीने ढाई हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है, लेकिन उससे भी यह अभी दूर है।
नौकरी से वंचित-बालक के पिता बाबू लाल मीणा ने बताया कि वो तीस वर्ष का था। तब तक आर्थिक तंगी के बाद भी पढ़ाई की लगन के कारण उसने बीए की पढ़ाई पूरी की। बीएड करने के बाद पुत्रों को बीमारी की चपेट में आने से नौकरी भी एक सपना बनकर रह गई है।
आर्थिक सहायता दिलवाएंगे
मेरी जानकारी में ऐसा कोई मामला नही आया है अगर ऐसा है तो जल्द ही चिकित्सा विभाग की ओर से उपचार के साथ ही जो भी नियमानुसार आर्थिक सहायता होगी, दिलवाने का प्रयास करेंगे।
गोकुल मीणा, सीएमएचओ टोंक।