अपने अनूठे भौगोलिक, सांस्कृतिक और जातीय समीकरणों के चलते टोंक सवाईमाधोपुर की यह सीट पूरे प्रदेश में एक बारगी कड़े मुकाबले वाले सीट बन गई थी। लेकिन टोंक सवाईमाधोपुर लोकसभा क्षेत्र के नतीजों से एक बार फिर यह साबित हो गया है कि जिसने टोंक जिले में परचम लहरा दिया जीत का सहरा उसके ही सिर बंधा।
पिछले लोकसभा चुनाव में भी टोंक, मालपुरा, निवाई और देवली उनियारा ने भाजपा के सुखबीर सिंह जौनापुरिया को निर्णायक बढ़त दी थी वही बात इस बार फिर हुई है और मालपुरा व निवाई ने ही इतनी झोली भर दी की नमोनारायण मीना को गंगापुर, बामनवास, सवाईमाधोपुर से मिली बढ़त कहीं टिक नहीं सकी।
इस जीत में खंडार की भी अहम भूमिका रही। यह अनुमान सभी को था कि नमोनारायण मीणा बामनवास के स्थानीय निवासी होने के चलते सवाईमाधोपुर क्षेत्र में अपना अच्छा असर रखते हैं और इसी अनुरूप उन्हें गंगापुर, बामनवास सवाईमाधोपुर में लीड भी मिली।
इसी अऩुरूप निवाई और मालपुरा में भाजपा को मिला समर्थन आभास अवश्य देता है कि वहां भाजपा कार्यकर्ताओं ने रणनीति के तहत मतदान का प्रयास किया ताकि वे सवाईमाधोपुर से आने वाली लीड को पाट सके। दोनों ही प्रत्याशियों को विधानसभावार मिले मतों में जातिगत समर्थन की झलक साफ नजर आती है।
विधानसभा चुनावों में क्षेत्र की आठ में से सात सीटें जीतने ( एक निर्दलीय समर्थक विधायक ) के बावजूद कांग्रेस के परम्परागत मतदाताओं का मतदान को लेकर उत्साह नहीं दिखाना भी परिणाम तय करने में एक अहम कारक रहा है।
जातिगत समीकरणों के आधार पर चुनाव अभियान आगे बढ़ा त्यों- त्यों राष्ट्रवाद के विचार ने अपना अहम असर दिखाया। पूरे संसदीय क्षेत्र में मोदी हर चुनावी चर्चा का मुद्दा थे और नतीजा रहा कि टोंक सवाईमाधोपुर की धरती पर मोदी है तो मुमकिन है का नारा एक बार फिर साकार हो गया।