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राजस्थान में यहां भाटा-राड़ के लिए प्रसिद्ध है होली, सिर फूटने को मानते थे शुभ

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टोंकMar 20, 2019 / 10:15 am

pawan sharma

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राजस्थान में यहां भाटा-राड़ के लिए प्रसिद्ध है होली, सिर फूटने को मानते थे शुभ

टोडारायसिंह. कस्बे में तीन दशक पहले होली के अवसर पर खेला जाने वाला भाटा-राड़ (पत्थरों की लड़ाई) प्रेम व सद्भावना का प्रतीक था, जिसमें सिर फूटने को शुभ माना जाता था। हालांकि अब समय के साथ लोग भाटा राड़ नहीं खेलते है। बुजुर्गों से इस इस संबंध में बात करते हुए उनके चेहरे चमक उठते है और बताते है कि चंग की थाप पर, गीत व साखियों के बीच खेले जाने वाला होली का पर्व टोडारायसिंह में भाटा-राड़ के लिए प्रसिद्ध रहा है।
इसे दूर-दूर के लोग देखने आते थे। कस्बे में परम्परानुसार प्रत्येक होली के तीसरे दिन भूड़ा पोल से ईलाहजी(बादशाह)की सवारी लाई जाती थी तथा चतरी पोल(महल रास्ते का दरवाजा)से शनेती(शवयात्रा) की सवारी निकाली जाती थी। दोनों सवारियां माणक चौक के समीप आमने-सामने खड़ी रहती थी दोनों ओर की सवारियों में शामिल लोग चंग की थाप पर साखियों की प्रस्तुति करते हुए संघर्ष का आह्वान करते थे।
साखियों की हार होते ही पत्थरों की बोछार शुरुहो जाती थी। भाटा-राड़ में सिर फूटने को शुभ माना जाता था। ऐसी मान्यता थी कि सभी बीमारियां व क्लेश दूर हो गए है। पत्थरों की लड़ाई के इस खेल में मनमुटाव व रंजिश लेस मात्र भी नहीं होता था। धार्मिक सौहार्द का प्रतीक इस खेल में वैष्णव, जैन, मुसलमान, हिंदू व अन्य सभी जाति समाज के लोग हिस्सा लेते थे, लेकिन पिछले तीन दशकों से इस लड़ाई (भाटा-राड़) की प्रथा रोक लगा दी है।
सिर्फ दोनों ओर से धार्मिक हर्षोल्लास के साथ सवारियां निकालकर माणक चौक एकत्र होते है। जहां पर साखियां व होली के गीतों पर युवा जमकर होली खेलते है। शाम को आमसागर, भूतेश्वर, बुद्धसागर, लाडपुरा व अन्य प्राकृतिक व पिकनिक स्थलों पर पहुंच कर गोठों का आयोजन किया जाता है। होली के पर्व पर आज भी बुजुर्गों व युवाओं द्वारा भाटा-राड़ याद किया जाता है।

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