अरावली पर्वत मालाओं के बीच से बलखाती हुए चम्बल की ओर बहती बनास किनारे बने महल, छत्तरियां, मंदिर, शिलाबारी दह, घाट , पहाड़ी गुफाओं में बने बाहर शिवलिंगों की स्थापना यहां की पहचान है। यहां लगभग आठ सौ फीट ऊंचाई पर पहाड़ी की चोटी पर गुरु शिखर की भांति बना किला राजमहल गांव को 12 किमी दूर से ही पहचान करा देता है।
आजादी से पूर्व यहां गांव की सरकार जयपुर रियासत के राजाओं के निर्देश पर चलती थी। इसी के चलते ठाकुर प्रेम सिंह ने गांव का नाम भी राजमहल रख दिया था। ठाकुर प्रेम सिंह को जयपुर रियासत की ओर से दूनी रियासत सौंप दी गई थी। उसके बाद यहां ठाकुर कल्याण सिंह व भगवत सिंह नामक राजाओं ने विरासत सम्भाली थी। यहां के गढ़ को अब राजमहल गढ़ पैलेस में बदल दिया है।
वर्तमान में राजमहल गांव कस्बे में बदल चुका है। जहां अब लगभग यहां 10 हजार से अधिक की आबादी हो चुकी है, जिसमें लगभग 4 हजार मतदाता निवास करते है। यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है, जिसमें बनास नदी का पेटाकास्त भी शामिल है। यहां आस-पास की ढाणियों को मिलाकर लगभग 4000 हजार बीघा भूमि में कृषि कार्य होता है।
यहां मुख्य बाजार के करीब ही सार्वजनिक तालाब है, जिसके किनारे लगभग 80 से 100 बीघा भूमि में सांई जी नामक बाग बना है। जिसमें देशी आम, बिल्व, अमरूद, सीताफल, बांस सहित कई प्रजाति के पेड़ लगे है। बाग के कच्चे आम अचार के लिए कोटा, जयपुर, टोंक, टोडारायसिंह आदि शहरों में अगल ही पहचान रखते है।
राजमहल गांव राष्ट्रीय राजमार्ग के संथली से सात किमी की दूरी पर व देवली की तरफ राष्ट्रीय राजमार्म से 12 किमी की दूरी पर सडक़ मार्ग से जुड़ा है। जहां परिवहन सुविधा के तौर पर निजी बसें व निजी वाहन ही संचालित है।
बीसलपुर बांध ने दिलाई अलग पहचान
प्रकृति की गोद मेें बसे राजमहल गांव की एक अलग ही पहचान मानी जाती थी। जहां वर्षों से यहां विदेशी सैलानियों का आना जाना लगा रहता था। यहां बनास में मत्स्य आखेट के लिए भी शिलाबारी दह में जयपुर ,टोंक व अजमेर जिलों से लोग आते है। गांव से महज 7 किमी की दूरी व बनास नदी से दो किमी की दूरी पर स्थित राजमहल पंचायत में बीसलपुर बांध स्थित है, जिसने भी गांव की अलग पहचान बनाई है। बांध से यहां के लोगों को काफी रोजगार भी मिला है।