इस असफलता की सीढ़ी पर खड़ी सईदा ने राह के रोडे का जिक्र अपने शिक्षाविद् पति अमीर अहमद सुमन से किया। ऐसे में पति अमीर अहमद ने सईदा को पढ़ाने का जिम्मा ले लिया। बस फिर क्या था, रात में सईदा पति से अक्षर ज्ञान लेती और सुबह उसे अपने आंगन में खेलने आईं बालिकाओं के दामन में परोस देती।
किनारे पर आई गई किश्ती
तमाम मुश्किलों व दिक्कतों की नदी में हिचकोले खाती शिक्षा की किश्ती अब किनारा पा चुकी है। सईदा के स्कूल में सौ से अधिक लडक़े-लड़कियां पांचवीं तक शिक्षा प्राप्त करते हैं। रिटायर होने के बाद उनके पति भी सईदा के स्कूल में पढ़ाते हैं। सईदा स्वयं भी अब हिंदी अच्छी तरह लिख-पढ़ लेती हैं। वर्ष1992 में शुरू हुआ उनका स्कूल अब क्षेत्र के मुख्य स्कूलों में शुमार है। वर्ष2006 से उसे बाल श्रमिक विद्यालय का दर्जा भी मिल गया है।
सईदा हो चुकी है सम्मानित
5 सितम्बर 1998 को राज्यपाल की ओर से राज्य स्तरीय अक्षर मित्र पुरस्कार से सम्मानित सईदा बाजी को जिले की प्रथम अक्षर मित्र होने का गौरव मिला। इसके बाद 15 अगस्त 1998 को जिला स्तर पर सम्मानित किया गया। इसके अलावा अन्य सम्मान से भी सईदा को नवाजा गया।