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गायब होता तीखापन, विलुप्त होती देशी मिर्च

हाइब्रिड का छिलका प्लास्टिक की भांति कठोर होता है मगर तीखापन नही के बराबर होता है। जिसके कारण अधिकांशतर लोग देशी की तलाश में भटकते नजर आने लगे हैं।
 

टोंकDec 09, 2023 / 02:53 pm

pawan sharma

गायब होता तीखापन, विलुप्त होती देशी मिर्च

गायब होता तीखापन, विलुप्त होती देशी मिर्च

हाइब्रिड किस्म की मिर्च रंग व आकार में भले ही देशी की अपेक्षा अधिक मोटी व लम्बी होने के साथ ही गहरी हरे रंग में होती हैं। जिसमें बीज कम व गुर अधिक होता है। हाइब्रिड का छिलका प्लास्टिक की भांति कठोर होता है मगर तीखापन नही के बराबर होता है। जिसके कारण अधिकांशतर लोग देशी की तलाश में भटकते नजर आने लगे हैं।
देशी मिर्च का जायका व तीखापन बरकरार

पिछले कुछ वर्षों से किसान अधिक उत्पादन के चक्कर में हाइब्रिड मिर्च की अधिकता से बुवाई करते हैं। वही देशी मिर्च को भुलाते जा रहे हैं। आज भी मंडियों में देशी मिर्च के दाम हाइब्रिड मिर्च की अपेक्षा दूगने दामों पर बिक रही हैं। आज भी देशी मिर्च का जायका व स्वाद के साथ तीखापन बरकरार है।
हाइब्रिड ने बिगाड़ा जायका

मिर्च की खेती के साथ ही अन्य कई प्रकार की फसलों में हाइब्रिड बीज की तकनीक से पैदावार में तो बढ़ोत्तरी हुई है। मगर देशी बीज से उत्पादित फसल में स्वाद अधिक होने से लोग हाइब्रिड को कम मात्रा में इस्तेमाल करने लगे हैं। जिसके कारण घटती मांग के साथ ही बढ़ती पैदावार को लेकर मंडियों में हाइब्रिड मिर्च के दाम भी कम मिल रहे हैं।
कौडिय़ों के दाम पर बेचने को मजबूर

किसानों की ओर से खेतों में बोई गई मिर्च की फसल के गिरते दामों ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है। किसानों की ओर से महंगे बीज व रसायन खाद के साथ ही कीटनाशक व ङ्क्षसचाई को लेकर महंगे डीजल के दामों पर तैयार की गई मिर्च की तैयार फसल को मंडियों में कौडिय़ों के दाम पर बेचने को मजबूर हो रहे हैं।
मंडी भाव में लगातार गिरावट

दीपावली के बाद से ही लगातार मिर्च के मंडी भाव में गिरावट आती गई जो अभी कौडिय़ों के दाम महज 6 से 7 रुपए प्रति किलो के भाव बिक रही है। उक्त भाव में तैयार मिर्च तोडऩे के लिए लगते श्रमिकों व मंडी तक पहुंचाने में आते भाड़े की कमी महसूस होने लगी है। इसको लेकर किसान दुखी नजर आ रहे हैं।
400 हेक्टेयर भूमि में मिर्च की फसल

किसान कैलाशचंद वर्मा, मांगीलाल, मूलचंद आदि ने बताया कि इस बार राजमहल, रावता माता्रजी, रूपारेल, रघुनाथपुरा, नाकावाली, सीतारामपुरा आदि गांवों की करीब 300 से 400 हेक्टेयर भूमि में मिर्च की फसल बोई गई है। इसके शुरुआती दौर में निकटवर्ती देवली, टोंक, बूंदी कोटा आदि मंडियों में प्रति किलो 15 से 20 रुपए बिकने से किसानों को खर्च के बाद मुनाफा हो रहा था।

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