रियासतों में मजदूरी करने वाले यह परिवार खनन के साथ पशुपालन को आजीविका का साधन बना लिया। खनन से जुड़े बीसलपुर, थड़ोला, झोपडिय़ां व भटेड़ा गांव के अधिकांश मजदूर परिवार समेत पहाड़ी तलहटी में रहने लगे। श्रमिकों की बसावट से बने थड़ोली गांव को आजादी बाद तीन चार छोटी ढाणियों को शामिल कर पंचायत मुख्यालय बनाया गया।
वर्तमान में थड़ोली की करीब 1500 के करीब आबादी है। इसमें रैगर, मीणा, गुर्जर व राजपूत समाज के लोग है। कुछ परिवार कृषि कार्यो के आलावा अधिकांश लोग भेड़, बकरी व अन्य पशुपालन से जुड़े हुए है। हालही सरपंच दुर्गासिंह बारेठ ने बताया कि आजीविका का साधन नहीं होने से आर्थिक तंगी में दर्जनों परिवार दो दशक पहले रोजगार की तलाश में जयपुर, दिल्ली व मुम्बई की ओर पलायन कर गए। वीरान पड़े इनके घरों पर वर्षों से ताले लगे हुए है, जो परिवार रह रहे है वो मूल सुविधाओं के साथ पेयजल संकट से जुझ रहे है। गांव में सीसी रोड का अभाव है, निकासी नालियों के अभाव में कीचडय़ुक्त मुख्य रास्तो से जनजीवन प्रभावित है।
बीसलपुर बांध किनारे बसे थड़ोली गांव वर्तमान में पेयजल संकट से जूझ रहा है। जबकि प्रदेश की लाइफ लाइन बने बीसलपुर बांध से जयपुर, अजमेर शहर समेत ग्रामीण क्षेत्र के दर्जनों गांवों में पानी पहुंचाया जा रहा है। वही गांव के लोग पीने के पानी को तरस रहै है। सरपंच दुर्गासिंह बारेठ ने बताया कि सार्वजनिक नल स्थापित कर गांव को बीसलपुर ग्रामीण पेयजल योजना से जोड़ा गया। पिछले पांच वर्षों से नल बंद पड़े है। कई बार विभागीय अधिकारियों को अवगत कराया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। स्थिति यह है कि अथाह जल भंडार होने के बावजूद थड़ोली गांव व पंचायत क्षेत्र के लोग पेयजल के लिए पारम्परिक जलस्त्रोंतो पर भटक रहे है।