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ओपिनियन

ब्रेक द रूल्स

इनसे साहसी तो अरविन्द केजरीवाल ही हैं जो सीधे-सीधे सत्ता से टकरा रहे हैं फिर चाहे उनके उम्मीदवार की जमानत ही जब्त क्यों ना हो जाए। सही है ‘गिरते हैं घुड़सवार ही मैदाने जंग में’।

टोंकApr 15, 2017 / 01:43 pm

जिन्दगी में आगे बढऩे का एक मात्र रास्ता है ‘ब्रेक द रूल्स’ यानी नियमों को तोड़ो। नियम का अर्थ है वह बंधा बंधाया ‘सेटअप’ जिससे हम रोज गुजरते हैं। नियम तोडऩे से हमारा तात्पर्य उन हरकतों से नहीं है जो हम रोज करते हैं जैसे लाइन तोड़कर बिजली का बिल जमा कराना। 
लालबत्ती में ट्रैफिक रूल्स तोडऩा, नाकाबिल औलादों को कॉलेज में भरती कराना या इसी तरह की हजारों हरकतें, जिन्हें करते हुए हम कतई नहीं शर्माते। नियम कैसे तोड़े जाते हैं इसका उदाहरण आईपीएल के मैच में गौतम गंभीर ने सिद्ध किया। 
हम दंग रह गए कि किंग्स इलेवन पंजाब के एक सौ सत्तर रनों को पार करने के लिए वे ओपनर के रूप में वेस्टइंडीज के गेंदबाज सुनील नरेन को लेकर मैदान में उतरे। जिसे आपने हमेशा नौ-दस नम्बर पर बल्लेबाजी करते देखा हो उसे सलामी बैट्समैन के रूप में देख चौकेंगे ही। 
सुनील नरेन ने आते ही ऐसी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी की कि मात्र सात-आठ ओवर में टीम को जीत के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया। इसे कहते हैं ‘ब्रेक द रूल्स’ जो गंभीर ने तोड़ा। ऐसा काम साहसी लोग ही कर पाते हैं क्योंकि इसमें जीत-हार दोनों की गुंजाइश रहती है। 
अगर जीत गए तो वाह-वाही और हार गए तो आपके इतने जूते पड़ते हैं कि सिर पर एक बाल भी नहीं बचता। लेकिन जीतते वही हैं जिनमें साहस होता है। देश की राजनीति में भी आजकल ‘ब्रेक द रूल्स’ का खेल चल रहा है। 
नरेन्द्र भाई मोदी एक से एक साहस भरे फैसले ले रहे हैं चाहे नोटबंदी का हो या फिर यूपी के सिंहासन पर योगी को प्रतिष्ठित करने का। उधर प्रमुख विपक्षी कांग्रेस अभी तक अपने युवराज का कुर्सीरोहण ही नहीं कर पा रही है। 
इनसे साहसी तो अरविन्द केजरीवाल ही हैं जो सीधे-सीधे सत्ता से टकरा रहे हैं फिर चाहे उनके उम्मीदवार की जमानत ही जब्त क्यों ना हो जाए। सही है ‘गिरते हैं घुड़सवार ही मैदाने जंग में’।
व्यंग्य राही की कलम से 

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