देहरादून। भारत में उत्तराखंड अंग्रेजों की पसंदीदा जगहों में से एक रहा है यही कारण है कि राज्य के मसूरी, पौड़ी, रानीखेत व चम्पावत सहित कई स्थानों पर कई नामी गिरामी अंग्रेजों ने अपना पूरा जीवन बिताया था। इतना ही नहीं विल्सन जैसे व्यापारी अंग्रेज ने तो हर्षिल को अपना ठिकाना बनाते हुए वहीं की महिला से शादी रचाकर अपना घर बसा लिया था। राज्य का पर्यटन विभाग विदेशों में रहे अंग्रेजों को अपने पूर्वजों से मिलवाने के लिए ‘नो यॉर रूटस’ नाम से एक योजना शुरू कर रहा है ताकि विदेशों में रह रहे अंग्रेजों को उनके पुरखों की कब्र तक ले जा सके।
पर्यटन विभाग के अधिकारी के अनुसार शीघ्र ही यहां आने वाले पर्यटकों को कब्रों की सैर कराएगा। इस तरह के पर्यटन को कई देशों में अच्छा रेस्पॉन्स भी मिल रहा है। उत्तराखंड पर्यटन विभाग अनेक जाने-पहचाने लोगों का डेटा एकत्र कर रहा है, जिन्होंने पहाड़ों पर शरण ली और वहां उनकी मौत हो गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक जिनकी जानें गईं हैं, उनके परिजनों से संपर्क किया जाएगा। इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए व्यवस्था की जाएगी, जिससे वे उन लोगों की कब्रों को देख सकें। इस मुहिम का नाम ‘नो यॉर रूटस’ रखा गया है।
इस पहल में उन ब्रिटिश नागरिकों की दास्तां बयान की जाएंगी जो कभी यहां रहते थे। उनमें से कई जाने-माने चेहरे थे, कुछ आजादी से पहले के भी लोग थे। जिनकी कब्रें उनके परिवारों को दिखाई जाएंगी। कहा जा रहा है कि कब्र पर्यटन का यह विचार काफी महत्वपूर्ण है। इस तरह के पर्यटन को कई देशों में अच्छा रेस्पॉन्स मिला है। उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड के अडिशनल डायरेक्टर ए. के. द्विवेदी ने बताया कि ब्रिटेन, फ्रांस, न्यूजीलैंड जैसे देशों में इस तरह का पर्यटन खासा लोकप्रिय है।
द्विवेदी ने बताया कि आजादी से पहले यहां हजारों ब्रिटिश नागरिक यहां रहते थे, जॉन लेंग जैसे दिग्गज लोगों की कब्रें यहां हैं। उन्होंने बताया कि देहरादून, मंसूरी, चंपावत जैसी कई जगहों पर इनकी कब्रें हैं। बताया जा रहा है कि अंग्रेजों के परिजनों, रिश्तेदारों को विजिट करवाने के लिए आर्मी से भी परमिशन ले ली है।
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