बेलों से एक मीटर लंबी बेल तोड़कर अप्रेल से जून तक रोपणी का फैलाव, खरपतवार रहित तालाब में किया जाता है। रोपणी लगाने के लिए प्रति हेक्टेयर 300 किलोग्राम सुपर फॉस्फेट, 60 किलोग्राम पोटाश व 20 किलोग्राम यूरिया तालाब में डाला जाता है। साथ ही रोपणी को कीट एवं रोगों से सुरक्षित रखना अतिआवश्यक है। रोकथाम के लिए उचित कीटनाशी एवं कवकनाशी का भी उपयोग करते हंै।
जल्द पकने वाली प्रजातियों की पहली तुड़ाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एवं अंतिम तुड़ाई 20 से 30 दिसम्बर तक की जाती है। देर तक पकने वाली प्रजातियों की प्रथम तुड़ाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह में एवं अंतिम तुड़ाई जनवरी के अंतिम सप्ताह तक की जाती हैं। सिंघाड़ा फसल में कुल 4 तुड़ाई की जाती है।
1. अस्थमा के मरीजों के लिए फायदेमंद। नियमित खाने से श्वास संबधी समस्याओं में आराम मिलता है।
2. बवासीर जैसी मुश्किल समस्याओं से भी निजात दिलाने में कारगर है।
3. फटी एडिय़ां भी ठीक हो जाती हैं। शरीर में किसी भी स्थान पर दर्द या सूजन होने पर इसका लेप लगाने से राहत।
4. कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। हड्डयिां और दांत मजबूत रहते हैं। आंखों को भी फायदा।
5. रक्त, मूत्र संबंधी रोगों व दस्त में राहत।
6. सिंघाड़ा शरीर को ऊर्जा देता है। इसलिए इसे व्रत के फलाहार में उपयोग किया जाता है। इसमें आयोडीन पाया जाता है, जो गले संबंधी रोगों से रक्षा करता है। थाइरॉइड ग्रंथि को सुचारू करता है।
गर्भावस्था में सिंघाड़ा खाने से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं। इससे गर्भपात का खतरा भी कम होता है। इसके अलावा सिंघाड़ा खाने से महिलाओं की मासिक होने की समस्याएं भी ठीक होती हैं। इसके सेवन से ल्यूकोरिया नामक बीमारी भी ठीक हो जाती है। महिलाओं का गर्भ गर्भकाल पूरा होने से पहले ही गिर जाता है, उन्हें खूब सिंघाड़ा सेवन करना चाहिए। agriculture news इसके उपयोग से भ्रृण को पोषण मिलता है और मां की सेहत भी अच्छी रहती है।
अभिषेक मीना, चिकित्साधिकारी, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, पहाड़ा, खेरवाड़ा