आदिवासी बहुल जिले में गोवंश और भैंसवंश के कुल 15 लाख 25 हजार 817 पशु हैं लेकिन इनका इलाज करने वाले चिकित्सकों की बेहद कमी है। इसके अलावा घोड़े, गधे, खच्चर, बकरे-बकरियां, ऊंट, सूअर, भेंड़े, कुत्ते, मुर्गे-मुर्गियां के स्वास्थ्य की देखभाल नहीं हो पा रही है।
उपचार सहित कई कार्य प्रभावित
गांवों-कस्बों में अनुभवी चिकित्सकीय स्टाफ के अभाव में पशुओं के उपचार में खानापूर्ति हो रही है। गंभीर बीमार पशु दम तोड़ रहे हैं। प्रथम व द्वितीय श्रेणी के अस्पतालों में बीमार पशुओं की सर्जरी, पोस्टमार्टम, ऑपरेशन आदि नहीं हो रहे हैं। यही नहीं पशुओं के हेल्थ प्रमाण पत्र भी जारी नहीें होते हैं। इसके अलावा बंध्याकरण, कृत्रिम गर्भधान, टीकाकरण, खुरपका-मुंहपका एवं गलगोंटू का उपचार आदि कार्य प्रभावित हो रहे हैं। जिले के 306 पशु उप स्वास्थ्य केन्द्र भी बुरी स्थिति में हैं। इन पर तकनीकी सहायक या सफाईकर्मी ही पशुओं का उपचार करते हैं।
पशुपालन विभाग में वर्षो से सैंकड़ों पद रिक्त चल रहे है वर्ष 2017 में जरूर जिले में 70 पशुधन सहायकों की नियुक्ति हुई थी लेकिन अधिकतर कर्मचारी अन्य जिलों से आए थे जो तबादला करवाकर गृह जिलों में चले गए हैं। रिक्त पदों को भरने के लिए समय-समय पर राज्य सरकार को लिखा जा रहा है। – डॉ. ललित जोशी, उप निदेशक पशु पालन विभाग