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कम्प्यूटर युग में भी कायम है भरोसा बही-खातों पर

- आज भी दीवाली पर कई व्यापारी पूजते और लिखते हैं खाता-बही

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कम्प्यूटर युग में भी कायम है भरोसा बही-खातों पर

कम्प्यूटर युग में भी कायम है भरोसा बही-खातों पर

प्रमोद सोनी / उदयपुर . कम्प्यूटर युग में की-बोर्ड पर सरपट दौड़ती अंगुलियां कंप्यूटर के पर्दे पर एक मोहक संसार जरूर रचती है। , वहीं, बही-खातों में कागज और स्याही का समागम समय के साथ धुंधला तो पड़ सकता है, लेकिन किसी वायरस से डिलीट नहीं हो सकता।

दीपावली के दिन बही-खाता लिखने का काम आज भी अधिकांश व्यापारी उसी तरह करते हैं, जैसे सालों पहले किया करते थे। एेसे में इस खास त्यौहार पर कम्प्यूटर, लेजर डायरी, बिल डायरी आने के बाद भी बही लिखने की परम्परा बाकायदा कायम है।

कम्प्यूटर चलन में आने और फिर बाद जीएसटी सॉफ्टवेयर बन जाने पर भी बही खातों का क्रेज सर्राफ ा, बर्तन व्यापारी, कपड़ा, अनाज सहित अन्य व्यापारियों में बरकरार है। सर्राफ ा एसोसिएशन के सरंक्षक इंदरसिह मेहता ने बताया कि खाता बही में बसना को शुभ माना गया है, जिसे हम लाल स्याही से बही पर लिखते हैं।

उन्होंने बताया कि डिजीटल दौर में कम्प्यूटर की पूजा नहीं करके बही की ही पूजा की जाती है। इसी के चलते दीपावली पर लोग नई बहियां और खाते खरीद कर महालक्ष्मी की पूजा करते है। कई व्यापारी बही के साथ कलम दवात की पूजा भी करते हैं।

घंटाघर मोती चौहट्टा व्यापार समिति अध्यक्ष कैलाश सोनी ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग कम्प्यूटर के हिसाब से ज्यादा भरोसा बही-खाते में हाथ से लिखे पर करते है। कइयों का मानना है कि बही-खातों में लेन-देन व जमा खर्च आदि लिखना ज्यादा आसान रहता है।
मंडी स्थित खुदरा व्याापारी पारस खोखावत बताते है कि पुरातन परम्परानुसार बही-खाते अप्रेल से अपे्रल बदलते हैं। जिन्हें हर दीवाली पूजकर सालों तक सम्भाल कर रखते हैं।

शहर में बड़ा बाजार स्थित बहीखाता बनाने वाले फि रोज कागजी बताते है कि यों भले कम्प्यूटर का चलन पिछले कई बरसों से बढ़ा है। फिर भी वह अपने इस पुश्तैनी काम में सालों से लगे रहकर बही-खाते बना रहे हैं। वे कहते हैं कि समय के साथ बही-खातों की मांग कम जरूर हो गई, लेकिन दीवाली जैसे बड़े त्यौहार पर शहर और आसपास क्षेत्र में यकायक इनकी मांग बढ़ जाती है।

कांटे-बाट और औजार भी पूजे जाते हैं

बेशक, आधुनिक और तकनीक के इस दौर में कम्प्यूटर-लैपटॉप नई पीढ़ी के लिए आवश्यकता बन गए हों, लेकिन अधिकांश व्यापारी परम्परागत तौर पर आज भी अपने प्रतिष्ठानों पर बही-खातों, तराजू या नाप-तौल के औजारों से ही दीवाली पूजन करना पसंद करते हैं। एेसी मान्यता चली आ रही है कि दीपावली के दिन प्रदोषकाल में लक्ष्मी-पूजन के अलावा गणेश, सरस्वती, कुबेर आदि की पूजा और दीप प्रज्ज्वलित करना व्यापार वृद्धि के लिए शुभ होता है।

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एेसे होती है बही-खातों की पूजा

नए खाते-बही में केसर युक्त चंदन या लाल स्याही अथवा कुमकुम से स्वास्तिक चिह्न बनाकर प्रथम आराध्य श्री गणेशाय नम: लिखते हुए भगवती महा सरस्वती का ध्यान करते हुए गंध-पुष्प, धूप-दीप नैवेद्य से पूजन आराधन किया जाता है। इस दौरान कारोबार सहित परिवार में सुख-समृद्धि और सर्वत्र खुशहाली की कामना करते महालक्ष्मी का खासतौर पर आह्वान किया जाता है। शहर के कई व्यापारिक प्रतिष्ठान आज भी दीवाली पर खाते-बही के साथ तिजोरी और कांटे-बाट की पूजा करना नहीं भूलते।

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कई प्रकार की होती है बहियां
बाजार में ग्राहकों की मांग के मुताबिक 11 इंच चौड़ाई और 14 इंच लंबाई वाली ३५० पेज की बही रोकड़ लेन-देन के लिए प्रयोग में ली जाती है।

इसी तरह, 8.३ इंच चौड़ाई 14 इंच लम्बाई वाली 200 से 250 पेज की बही में व्यापारियों का अलग हिसाब रखा जाता है।
इसके अलावा, 7 इंच चौड़ाई व 8.3 इंच लम्बाई वाली बहियां डेली रूटीन अकाउंट के लिए 400 से १००० पेज की बनती हैं। अधिकांशत: छोटे व्यापारी इसे काम में लेते हैं।


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