कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष महेन्द्र सिंह चौहान ने आरोप लगाया कि तत्कालीन विकास अधिकारी को हाई मास्ट लाइटें लगाने की इतनी जल्दी थी कि चुनाव से पहले आचार संहिता को दरकिनार कर और लाइटें लगवाने पर आमादा थे। विपक्ष में रहते हुए उनकी ओर से आचार संहिता का हवाला भी दिया गया। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। अब विकास अधिकारी के तबादले के बाद करीब २० लाख लागत की निविदा प्रकिया ठण्डे बस्ते में पड़ी हुई है।
निविदा प्रक्रिया का कायदा कहता है कि विकास अधिकारी अधिकार क्षेत्र में बिना निविदा आमंत्रित किए हुए एक लाख लागत तक के कार्य करा सकता है। एक साल में अधिकतम ५ बार ५ लाख तक के काम करा सकता है। आरोप यह भी लग रहे हैं कि तत्कालीन विकास अधिकारी का कुछ कार्यकाल बांसवाड़ा में गुजरा था। इसी परिचय को ध्यान में रखकर विकास अधिकारी ने बांसवाड़ा की फर्म को सीधे लाभान्वित करने के प्रयास किए। भबराना का आलम यह है कि वहां लगाई गई लाइट महज शो-पीस बनकर रह गई है। इसकी वजह लाइट को अब तक बिजली कनेक्शन की सुविधा नहीं मिलना रहा है। रूपरेखा बनाते समय जल्दबाजी में प्रशासनिक अमला यह तय करना भूल गया कि लाइटों को बिजली की सप्लाई कहां से मिलेगी। इसके बिजली बिल का भुगतान कौन करेगा।
भ्रष्टाचार की बू तो तभी आ गई थी, जब मेरे स्तर पर सूचना मांगने के बावजूद पंचायत समिति ने इसकी जानकारी नहीं दी। जिला परिषद की साधारण सभा में सीईओ ने उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया था। सरकारी धन की बर्बादी को लेकर उचित जांच होनी चाहिए।
सुशीला कुंवर, जिला परिषद सदस्य
अभी मीटिंग में हूं। बाद में बात करता हूं।
धर्मराज गुर्जर, उपखण्ड अधिकारी, सलूम्बर