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उदयपुर

Chess Competition # बोल-सुन नहीं सकते, पर शातिर तरीके से अपने ही मूक-बधिर साथियों को दी पटकनी

– द्वितीय राजस्थान स्टेट चेस चैम्पियन ऑफ डेफ, राज्य के कई जिलों से पहुंचे मूक-बधिर, चेस में लगाया दिमाग
 

उदयपुरNov 27, 2017 / 12:39 pm

Mukesh Hingar

Chess Competition in udaipur Rajasthan State Chase Champion of Def
उदयपुर . भले ही वे बोल-सुन नहीं सकते लेकिन दिमागी खेल चेस में उन्होंने शातिर तरीके से अपने ही मूक-बधिर साथियों को पटकनी दी। महाराणा भूपाल स्टेडियम में रविवार को द्वितीय राजस्थान स्टेट चेस चैम्पियन ऑफ डेफ में राज्यभर से आए 62 खिलाडि़यों ने हिस्सा लिया। प्रतियोगिता में पहले तीन स्थान पर रहे खिलाड़ी 27 से 31 दिसम्बर को जबलपुर में होने वाली राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे।
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राजस्थान स्पोट्र्स काउंसिल ऑफ द डेफ व उदयपुर डिस्ट्रिक डेफ स्पोट्र्स के तत्वावधान में सुबह 9 बजे शुरू हुई प्रतियोगिता में एक बजे तक चार राउण्ड हुए। बाद में पांचवें राउण्ड में विजेता व उप विजेता का फैसला हुआ। खिलाडि़यों की हौसला अफजाई के लिए इंटरनेशनल चेस खिलाड़ी नागौर की सुमन बाम्बू व अजमेर की स्वाति जांगिड़ भी पहुंची।
दिव्यांगता को मजबूरी नहीं मानें

तीन साल की उम्र में पतंग व मांझे को पकडऩे के लिए लोहे का तार फेंका था, उसके बिजली के तार से छूते ही करंट ने मेरी जिंदगी बदल दी। यह कहना था अजमेर निवासी मूक-बधिर खिलाड़ी जितेन्द्र कुमावत का। वह बोल व सुन नहीं सकता है कि लेकिन चेहरे के हाव-भाव व हाथों की मुद्राओं से सब कुछ बयां कर देता है। उसका कहना था कि हादसे में करंट से एक हाथ पूरी तरह से जल गया था। सदमे से उसकी आवाज चली गई। शुरुआत में सोचने-समझने की शक्ति खो बैठा लेकिन मूक-बधिरों के साथ रहकर सब सीख गया। दिव्यांगता को कोई अपनी मजबूरी नहीं बनाएं, मेहनत करें, निश्चित रूप से मुकाम मिलेगा।
जितेन्द्र ने कहा कि हमेशा से सोचता था कि एक न एक दिन राजकीय सेवा में जाऊंगा और इसमें मैं कामयाब हुआ। आज अजमेर में मिलिट्री में बागवानी का काम कर रहा हूं। चूरू जिले के सरदारशहर में एक मूक-बधिर से विवाह हुआ और आज हमारा एक बोलने वाला बच्चा है। कुमावत का कहना है कि मूक-बधिर में वे सब काबिलियत है जो आम व्यक्ति में होती है। वह हर ऊंचाई को पा सकता है।

Chase Competition in udaipur Rajasthan State Chase Champion of Def
मूक-बधिरता को कभी हावी नहीं होने दिया
राजस्थान स्पोट्र्स काउंसिल ऑफ द डेफ के सचिव ऋषभदेव निवासी प्रवीण भंवरा का कहना था कि बचपन से बोल व सुन नहीं सकता था। स्कूल में होठों के इशारों से सीखने की प्रेक्टिस के साथ स्पीच थैरेपी भी की। अब होठों के हिलने पर ही सब समझ आ जाता है। परिवार में पापा, बड़े भाई, भाभी व पत्नी मूक-बधिर है। पत्नी विद्युत निगम में कार्यरत होकर भीलवाड़ा में रहती है। वह स्वयं परिवार के साथ ऋषभदेव में रहते है। भगवान ने मुझे बोल व सुनने की शक्ति नहीं दी लेकिन उसे कभी हावी नहीं होने दिया।

18 वर्ष की उम्र से कर रहा हूं सहयोग

मूक-बधिर के बीच रहते-रहते उनके इशारों को समझने वाले जयपुर के सांगानेर निवासी कमलेश कुमार शर्मा की कहानी भी अनूठी है। उनका कहना है कि मूक-बधिर बच्चों के साथ जुडऩे का सबसे बड़ा कारण मेरे अपने दो बड़े भाई हैं। मैं बचपन से ही भाइयों के इशारों का समझ लेता था। एक दिन भाई अपने प्रमाण पत्र बनवाने गए और दुकानदार ने पागल कहकर भगा दिया, तब उनकी बेइज्जती सहन नहीं हो पाई। तभी उसने मूक-बधिरों के साथ ही काम करने की ठान ली। आज वह कहीं भी जाते हैं तो मैं सहयोगी के रूप में इनके साथ जाता हूं। मैंने 18 वर्ष की कम उम्र में ही ठान लिया था कि कुछ बनूं या नहीं बनूं लेकिन मूक-बधिर भाई-बहनों के लिए ही काम करूंगा और वही मैं कर रहा हूं। आमजन के बीच मूकबधिरों को जो स्थान होना चाहिए वह हमें समाज में नजर नहीं आती है, इस बदलना होगा।

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