scriptराष्ट्रबोध की सदी के नायक थे चतुर्वेदी, उनका राष्ट्रबोध वही था, जो हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषि मुनियों का था : उमेश कुमार सिंह | Chaturvedi was the hero of the century of Nationality | Patrika News

राष्ट्रबोध की सदी के नायक थे चतुर्वेदी, उनका राष्ट्रबोध वही था, जो हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषि मुनियों का था : उमेश कुमार सिंह

locationउदयपुरPublished: Sep 03, 2018 01:26:24 pm

Submitted by:

madhulika singh

www.patrika.com/rajasthan-news

माखनलाल चतुर्वेदी पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

राष्ट्रबोध की सदी के नायक थे चतुर्वेदी

उदयपुर . माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रबोध के सदी नायक थे। उनका राष्ट्रबोध वही था, जो हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषि मुनियों का था। गांधीजी के अतिप्रिय होने पर भी वे वैचारिक दृष्टि से लोकमान्य तिलक के अधिक नजदीक थे। साहित्य और पत्रकारिता के अपने अनुष्ठान में वे शब्दों को चेतना में डुबो कर कलम तक लाते थे। उनमें भारतीय संस्कृति को ढूंढने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे तो खुद भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं।
यह विचार मध्यप्रदेश साहित्यिक परिषद के निदेशक उमेश कुमार सिंह ने रविवार को साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और राजस्थान साहित्य आकदमी के संयुक्त तत्वावधान में साहित्य अकादमी के एकात्म सभागार में आयोजित माखनलाल चतुर्वेदी : व्यक्ति और अभिव्यक्ति विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी के तृतीय पर्व की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक विषयों पर काम करने वाले विद्वानों और मनीषियों को सांस्कृतिककर्मी नहीं कह कर संस्कृतिधर्मी कहा जाना चाहिए। मूलत: साहित्यकर्मी साहित्यधर्मी ही होता है। उन्होंने कहा कि आजकल लेखनी भी धन प्राप्ति की लालसा में होने लगी है।
आलोचक-रचनाकार प्रेमशंकर त्रिपाठी ने आलेख पाठ में कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी जी में आपदमस्तक भारतीयता झलकती थी। उनके लिए बार-बार कहा जाता था कि घोर बंदिशों के दौर में वे तब भी आजाद थे, हम आज भी नहीं हैं। वे संपूर्णतावादी भारतीयता के प्रखर उन्नायक थे। इष्टदेव सांकृत्यायन ने कहा कि उनका नाटक कृष्णार्जुन युद्ध अद्भुत था। पुष्प की अभिलाषा सांस्कृतिक निष्ठा की याद दिलाती है। संगोष्ठी में रेखा खराड़ी ने पत्रवाचन में स्त्री विमर्श के प्रश्न उठाते हुए कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी सदा इसके हिमायती रहे। डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने माखनलाल चतुर्वेदी के आवाज वाला एक ऑडियो क्लिप सुनाया जिसमें वे स्वयं पुष्प की अभिलाषा कविता का पाठ करते सुनाई दिए। संचालन डॉ शिवशरण कौशिक ने किया।
READ MORE : तरुण सागरजी का उदयपुर से था विशेष लगाव …155 दिन गुजारे , 2011 में किया था चातुर्मास

किया था राष्ट्रीय चेतना का शंखनाद

चतुर्थ पर्व में ख्यातनाम साहित्यकार अरुण कुमार भगत ने आलेख पाठ करते हुए कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय चेतना के शंखनाद के साथ ही पत्रकारिता के माध्यम से रचनाकारों की बहुत बड़ी शृंखला भी खड़ी की। शिक्षाविद् एवं लेखिका क्रांति कनाटे ने कहा कि चतुर्वेदी कहा करते थे कि यह कैसी शिक्षा है जो बीस रुपए महीना कमाने वाला नकलनवीस बनाती है। आज हम इसकी तुलना साइबर कुली से कर सकते हैं। सौ बरस पहले जो बातें उन्होंने कही-लिखी, वे आज भी इतनी प्रासंगिक हैं कि यदि कथन का कालखंड उद्घाटित न करें तो पता ही नहीं चलता कि यह तब कही गई थी या आजकल में। विशिष्ट अतिथि कुमुद शर्मा ने कहा कि अंत:करण के आयतन को बढ़ाने वाली पत्रकारिता माखनलाल चतुर्वेदी ने की मगर आज इसने घोर व्यावसायिक रूप ले लिया है।
देश की पीड़ा को बनाया कालजयी

पद्मश्री विष्णु पंड्या ने कहा कि चतुर्वेदी ने देश की पीड़ा को समझा और हमेशा अपनी पीड़ा को परे रखकर देश की पीड़ा को कालजयी शब्दों से आवाज दी। उनकी रचनाओं को गुजराती में अनूदित करने का प्रयास किया जाएगा। समापन सत्र में मुख्य अतिथि ख्यात रचनाकार-चिंतक नंदकिशोर आचार्य ने चतुर्वेदी के रचनाकर्म की प्रासंगिकता को समकालीन लेखकों से उनके परस्पर संबंधों के आलोक में रख कर पुनर्रेखांकित करने की आवश्यकता पर बल दिया। अध्यक्ष पद से डॉ सूर्यप्रसाद दीक्षित ने चतुर्वेदी के व्यक्तित्व के अनछुए पक्षों की ओर ध्यान दिलाया। साहित्य अकादेमी के प्रतिनिधि अनुपम तिवारी ने दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। राजस्थान साहित्य अकादमी अध्यक्ष इंदुशेखर तत्पुरुष ने आभार जताया। संचालन सुरेन्द्र सिंह राव ने किया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो