न अंग्रेजी, न देसी उन्हें तो चाहिए ‘खाट्या’। जिसे वह खुद बनाते हैंं और पीते हैं। जरूरत पडऩे पर वे इसे चोरी छिपे बेचते भी हैं। यह कितनी घातक व जानलेवा है, उन्हें इसकी परवाह नहीं। उन्हें तो बस हलक से नीचे उतरते ही नशा आना चाहिए। उदयपुर संभाग के आदिवासी अंचल में ‘खाट्या’ यानी देसी शराब का निर्माण बहुतायत में होता है, इसे यहां का आदिवासी बड़े चाव से पीता है। जश्न व बड़े समारोह में इसकी ज्यादा पूछ होती है। इसे पीने से अब तक कई लोग जान गंवा चुके हैं। आदिवासी अंचल में यह शराब घर-घर बनने के कारण कई इलाकों में महिला व बच्चे भी इसके आदी हो चुके हैं। आदिवासी इसे थकान दूर करने का माध्यम बताते हैं। दिन भर मजदूरी करने के बाद वे रात को इसका सेवन करते हैं।