नियमानुसार सरकार की देखरेख में उगने वाली अफीम फसल को एकत्रित करने के बाद उसके डोडा को अधिकारियों की मौजूदगी में खेतों में ही नष्ट करना होता है, लेकिन दिखावे के लिए खेतों में मूंगफली के छिलके को नष्ट कर डोडा-चूरा की तस्करी की जा रही है। इस डोडा-चूरा में नशा होने से मारवाड़ में इसका बहुतायत मात्रा में चलन है। सरकार के प्रतिबंध व धरपकड़ के चलते गत पांच वर्ष में डोडा-चूरा की कीमत 600 रुपए बढकऱ तीन हजार रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई।
केन्द्र सरकार ने नशे के खतरे को भांपते जब एनडीपीएस पॉलिसी बनाई थी, तब पता चला कि राजस्थान, हरियाणा व पंजाब में चिकित्सकीय रिपोर्ट के आधार पर लोग दर्द निवारक के लिए डोडा-चूरे का सेवन करते हैं। ऐसे में तब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के विशेषज्ञों से जांच करवाई कि यह नशा क्या रोग निदान करता है? उन्होंने जांच में पाया कि यह रोग निदान नहीं, बल्कि शारीरिक व मानसिक कमजोरी को दूर करने के लिए सेवन किया जा रहा है। चिकित्सा जगत में यह दवाई नहीं है। पुष्टि होने के बाद सरकार ने इसकी खरीद बंद की तो इसके नशेड़ी और बढ़ गए तो तस्करी से भी धड़ल्ले से होने लगी।
मध्यप्रदेश के मंदसौर, नीमच, पीपली मंडी एवं राजस्थान के प्रतापगढ़, चित्तौडगढ़़, उदयपुर व भीलवाड़ा जिले के कुछ हिस्से में अफीम का उत्पादन होता है। मध्यप्रदेश से प्रतापगढ़, छोटीसादड़ी, बड़ीसादड़ी, निकुंभ, मंगलवाड़, भींडर, खेरोदा, डबोक, प्रतापनगर, सुखेर, गोगुन्दा, पिंडवाड़ा होते हुए डोडा-चूरा मारवाड़ पहुंचा है।