मेवाड़ में अजवाइन की खेती घटने से यह हो गया बड़ा नुकसान
patrika.com/rajsthan news
मेवाड़ में अजवाइन की खेती घटने से यह हो गया बड़ा नुकसान
मेनार. उदयपुर. राजस्थान में भरतपुर के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहद का उत्पादक हैं उदयपुरमेनार. देशभर में मिठास फैला रहा मेवाड़ का शहद अब कम नजर आएगा। इसका बड़ा कारण है कि यहां के किसानों ने अजवाइन की खेती से मुंह फेर लिया है। ऐसे में अन्य राज्यों से जो शहद उत्पादक मेवाड़ में शहद बनाने के लिए आते थे अब बंद हो गए हैं। राजस्थान में भरतपुर के बाद उदयपुर जिले में ही सबसे ज्यादा शहर उत्पादन होता है। जिले के मेनार सहित आसपास के इलाकों में पिछले 10 वर्षों से हिमाचल, पंजाब और उत्तरप्रदेश के विभिन्न इलाकों से कुछ युवा मधुमक्खी पालक के दल शहद उत्पादन को लेकर परिवार सहित आ रहे थे। अब बीते 2 वर्षों से मधुमक्खी पालक परिवारों ने आना बंद कर दिया है क्योंकि अजवाइन की खेती का रकबा ६५ फीसदी तक घट गया है। इन राज्यों से जिले में अंतिम बार ये परिवार 2018 में आए थे, उस वक्त भी उम्मीद के अनुरुप शहद का उत्पादन नही हुआ। ऐसे में वे अब नहीं आ रहे हैं। यहां सरकार कोई प्रोत्साहन भी नहीं देती है।
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मेवाड़ में यहां बनता है शहद
उदयपुर के मेनार माल क्षेत्र, मेनार- रुंडेड़ा मार्ग एव नवानिया तथा चित्तौडगढ़ जिले के डूंगला, मंगलवाड़, मोरवन के कुछ क्षेत्र वाले खेतों में सरसों के अलावा अजवाइन की खेती खूब होती है। कुछ क्षेत्रों के खेतों में हनी बी फार्म शुरू किया था। ये लोग अजवाइन के खेतों के आस पास मधुमक्खियों के छत्ते वाले बक्से रख देते थे। जब नवंबर और दिसंबर में अजवाइन पर फूल आने लगते हैं तो मधुमक्खियां अपने छत्तों (बक्सों) में शहद इक_ा करती हैं। ये शहद यूनिट में प्रोसेसिंग के बाद बाजार और कंपनियां तक पहुंचाया जाता था।
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अजवाइन के फूलों से बनता था शहद
इस खेती से जुड़े परिवारों का कहना है कि सरसों के फूलों से भी शहद बनता है लेकिन अजवाइन के फूलों से जो शहद तैयार होता है, वह काफी गाढ़ा होता है और अच्छी गुणवत्ता का होता है। कई लोग आयुर्वेदिक औषधि के तौर पर इसका उपयोग करते हैं। कुछ नामी कंपनियों में भी इसकी मांग रहती है, जो कई अन्य देशों में सप्लाई होता है। राजस्थान में प्रमुख रूप से भरतपुर में सरसों से उदयपुर में अजवाइन तथा कोटा क्षेत्र में धनिया के फूलों से मधुमक्खी पालन कर शहर तैयार करते हैं।
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किसानों ने इसलिए कम की खेती
इस क्षेत्र के किसानों ने अजवाइन की खेती से इसलिए मुंह फेरा है क्योंकि मौसम साथ नहीं दे रहा है। कभी ज्यादा तो कभी कम बरसात से फसल पूरी पक नहीं पाती है और नुकसान हो रहा है। एेसे में ज्वार की खेती करने लगे हैं। उदयपुर संभाग में हर वर्ष करीब ३० से ४० टन शहद का उत्पादन होता था अब तो पांच से दस टन ही रह गया है।
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