समिति के पदाधिकारियों ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वे यूआईटी, कलक्टर से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक कई बार इस जमीन को बचाने के लिए जा चुके हैं लेकिन 60 करोड़ रुपए की बाजार मूल्य वाली इस जमीन को बचाने के लिए किसी ने अभी तक कार्रवाई नहीं की। समिति अध्यक्ष ओम बंसल ने बताया कि यूआईटी अपने नक्शे व रिकार्ड में 42 हजार वर्गफीट की इस भूमि पर 1985 में ही चारदीवारी बनाकर सामुदायिक सुविधा के लिए आरक्षित कर चुकी है, तब से इस जमीन की देखरेख की जा रही है, वहीं इसको हड़पने के प्रयास किए जा रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि इस जमीन को हड़पने वाले आए दिन समिति के पदाधिकारियों को डरा रहे हैं तथा उन्हें भी जान से मारने की धमकी दे चुके हैं। समिति अध्यक्ष बंसल व मंत्री सम्पत भंडारी ने आरोप लगाया कि अधिकारियों से मिलीभगत कर इस जमीन की गैर कानूनी तरीके से 90बी कर दूसरे लोगों के नाम दर्ज कर दी गई है। समिति ने बताया कि राज्य सरकार तक को मामले से अवगत कराने के बावजूद अब तक न तो जांच की जा रही है, न ही भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई ही की गई है। पुलिस मुख्यालय से भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, उदयपुर को भी मामले की जांच कर कार्रवाई को कहा लेकिन मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसके अलावा लोकायुक्त के कैम्प में भी मामला ले गए थे।
READ MORE: PICS: ये है UDAIPUR मेरी जान!! उदयपुर की ये तस्वीरें किसी जन्नत से कम नहीं है हम समिति के साथ : मामले में यूआईटी सचिव रामनिवास मेहता ने कहा कि यूआईटी आदिनाथ समिति के साथ है। यूआईटी ने समाचार पत्र में आम सूचना देकर चेताया कि इस जमीन की कोई खरीद-फरोख्त नहीं करें, यह जमीन सामुदायिक सुविधा के लिए आरक्षित की है। हमने उस जमीन पर पार्क बनाने के लिए कार्यादेश जारी किया और
काम भी शुरू किया था, बाद में अधिवक्ता के जरिए हमें नोटिस दिलाया गया कि इस जमीन को लेकर रेवेन्यू बोर्ड में स्टे है, ऐसे में काम कैसे कर रहे हैं।
ऐसा था प्लान बंसल ने बताया कि पूर्व में जगत मेहता की बाड़ी के नाम से चिह्नित कृषि भूमि के आराजी नं. 526 से 535 तक एवं 537 से 543 तक वर्तमान आराजी नं. 1850 की कुल 3.8100 हैक्टेयर (408736 वर्गफीट) भूमि को एक क्रेता ने आवासीय उपयोग में परिवर्तन के लिए जिला स्तरीय कमेटी (डी.एल.सी.) से 24.11.1984 को मंजूरी प्राप्त की।
इसके अनुसार 40 प्रतिशत भूमि (1,63,495 वर्गफीट) सडक़, पार्क व सामुदायिक सुविधा के लिए यूआईटी को सरेण्डर करने के बाद बकाया 60 प्रतिशत भूमि में प्लाट नं. 1 से 100 तक कुल 100 प्लाट काट कर बेचने का प्लान मंजूर हुआ था। यूआईटी ने जिला स्तरीय कमेटी डी.एल.सी. की मंजूरी के तहत उक्त कॉलोनी को आदिनाथ नगर समिति नाम देते हुए ड्राइंग सं. 1/85 से ले आउट प्लान फाइनल कर 5 जनवरी, 1985 को टाउन प्लानर, सचिव नगर विकास प्रन्यास की ओर से मंजूरी देते हुए सभी प्लाट खरीदने वालों से विकास शुल्क प्राप्त कर रोड व पार्क डवलप किए।
इसके साथ ही 42 हजार वर्गफीट भूमि पर 1985 में ही चारदीवारी बनाकर सामुदायिक सुविधा के लिए रिजर्व कर दी गई जिसकी देखरेख पिछले 25 वर्ष से आदिनाथ नगर समिति (रजि.) के निवासी कर रहे हैं।