——- सरकार आ रही आगे
– चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के द्वारा जनवरी 2020 से 31 जनवरी 2021 तक 1236 कैम्प आयोजित किये गये एवं कैम्पों में स्क्रीनिंग के बाद 22123 संभावित रोगी चिह्नित किए गए। – भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक कल्याण मण्डल, श्रम विभाग द्वारा जनवरी 2020 से 31 जनवरीए 2021 के दौरान 15 स्वास्थ्य जॉच शिविर लगाये गये। जिनमें से 12 विशेष शिविर सिलिकोसिस प्रमाणपत्र सत्यापन के लिए तथा 3 शिविर सिलिकोसिस चिन्हित करने के लिए लगाये गये। इन शिविरों में 545 हिताधिकारियों को जांच के उपरान्त 372 सिलिकोसिस के प्रकरणों को सत्यापन एवं चिन्हित किया गया।- सिलिकोसिस बीमारी से पीडि़त एवं चिह्नित ज्यादातर मण्डल में पंजीकृत हिताधिकारियों को राहत सहायता दी जा चुकी है। 31 जनवरी 2021 को श्रम विभाग में केवल 46 हिताधिकारियों के प्रकरण भुगतान के लिए लम्बित थे, इस दौरान 1576 हिताधिकारियों को 43 करोड 7 लाख रुपए की सहायता दी जा चुकी है।
——- फरवरी तक 2122 प्रकरण लम्बितसिलिकोसिस ऑनलाईन पोर्टल की रिपोर्ट फरवरी 21 तक खान विभाग के 2122 प्रकरण भुगतान हेतु लम्बित है। सिलिकोसिस ऑनलाईन पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार 599 सिलिकोसिस में चयनित मरीजों के प्रमाणीकरण नहीं होने से उन्हें देय मुआवजा राशि नहीं मिली है।
——- जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ अंशुल म_ा ने बताया कि पहली बार मरीज में सिलिकोसिस मिलने पर 3 लाख रुपए दिए जाते हैं, जबकि यदि मौत हो जाती है तो उसे मृत्यु पर 2 लाख रुपए दिए जाते हैं। चिकित्सा विभाग जांच कर ये पुष्टि करता है कि मरीज को सिलिकोसिस है।
——– सिलिकोसिस खान मजदूरों, मूर्तियेां का काम करने वालों व पत्थरों से जुड़े काम करने वाले श्रमिकों को होता है। फेंफड़ों में पत्थर का इसका बुरादा माइक्रो फाइन पार्टिकल के रूप में चला जाता हैं। वहां जाकर गैस का आदान-प्रदान करने वाले स्ट्रक्चर को प्रभावित करता है। इससे फेंफड़े खराब होने लगते हैं। ऐसे में फाइब्रोसिस डवलप हो जाता है। इसे सामान्य भाषा में फेंफड़े कठोर होना कहते है। इससे गैस का आदान-प्रदान बंद हो जाता है, मरीज सास नहीं ले पाता। सास लेने के लिए उसे प्रयास करने पड़ते हैं। इससे टीबी व कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। इसका कोई उपचार नहीं है। मास्क लगाने, पत्थरों को पानी में भिगोकर रखना, ताकि मिट्टी नहीं उड़े। नियमित जांच करवाने से बचाव होता है। ज्यादा असर होने पर मरीज की अधिकतम पांच वर्ष में मौत हो सकती है।
डॉ मनोज आर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर रेस्पिरेट्री डिजीज एण्ड ट्यूबरक्लॉसिस आरएनटी मेडिकल कॉलेज उदयपुर