साथ ही याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका स्वीकार की और लिखित टिप्पणी करते हुए जहां जिला कलक्टर की ओर से की गई कार्रवाई को न्यायिक प्रावधानों का दुरुपयोग बताया, वहीं 5 दशक बाद की गई रेफरेंस की कार्रवाई को हद से अधिक व अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया है। याचिकाकर्ता लेकपैलेस होटल्स की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेंद्रसिंह सिंघवी, मनीष सिसोदिया, रमित मेहता व असलम नौशाद ने कहा कि मेवाड़ राज्य के राजस्थान में विलय के समय भारत सरकार के साथ किए गए अनुबन्ध के अंतर्गत जो निजी सम्पत्तियां प्रदान की गईं। इनमें जिसमें सिटी पैलेस की दक्षिणी सीमा में खास ओदी भी शामिल थी। बाद में सीमा का विवाद होने पर राज्य सरकार ने सन् 1961 के आदेश से स्पष्ट किया था कि पैलेस की सीमा में पूर्व महाराणा की सम्पत्ति खास ओदी भी सम्मिलित है। यह निर्देश भी दिया कि उसका सरकारी रिकॉर्ड में विधि अनुसार इन्द्राज किया जाए।
उन्होंने कहा कि उस सम्पत्ति को लेकर उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने 1994 में यह व्यवस्था दी है कि यह सम्पत्ति आबादी भूमि का भाग है व इसका राज्य सरकार अधिग्रहण नहीं कर सकती। यही नहीं, सीलिंग की कार्रवाई में इस सम्पत्ति को पूर्व महाराणा की सम्पत्ति व आबादी का भाग मानते हुए कार्रवाई समाप्त कर दी गई, जो आदेश अंतिम हो चुके हैं। इस सम्पत्ति को तत्कालीन पूर्व महाराणा की ओर से प्रार्थी लेक पैलेस होटल्स एण्ड मोटल्स प्राइवेट लिमिटेड को बेचान कर दिया गया। इसलिए जिला कलक्टर की ओर से 19 अप्रेल 2012 को जारी आदेश व खास ओदी नाम से सम्पत्ति के नामांतरकरण रद्द करने के लिए राजस्व मण्डल में रेफ रेन्स करना अपास्त किया जाए।