कहा कि वर्ष 2010 से संयुक्त राष्ट्र ने पानी के मानवाधिकार को मान्यता दी। और विभिन्न देशों ने इस पर कानून बनाये। दक्षिणी अफ्रीका में भी नागरिकों की घरेलू आवश्यकताओं व दैनंदिन जीवन के लिए जरूरी जल की आपूर्ति को मानवाधिकार कानून बनाया गया, लेकिन जब केपटाउन में पानी ही नहीं रहा तो मानवाधिकार के इस कानून का कोई अर्थ ही नहीं रह गया। इसलिए यह समझना होगा कि नागरिकों को जीवन के लिए जल का मानवाधिकार तभी प्राप्त हो सकेगा जब प्रकृति में जल होगा।
डॉ नंदिता ने पानी से जुड़े मानवाधिकारों का विश्लेषण करते हुए कहा कि इसकी प्राप्ति के लिए वहनीय शुल्क सीमा में उचित गुणवत्ता के जल की उपलब्धता, पहुंच, समान व भेदभाव रहित वितरण तथा आम नागरिक तक उसकी मात्रा व गुणवत्ता की सूचना व जानकारी होना आवश्यक है। इन सभी आयामों का पूर्ण होना तभी संभव है जब पारंपरिक ज्ञान व विधियों से जल का संरक्षण व प्रबंधन किया जाए व हर स्तर पर समाज की सहभागिता सुनिश्चित की जाए।
इस अवसर पर रियाज तहसीन, डॉ तेज राजदान, निर्मल नागर, ओमप्रकाश सिंह, पीसी सामर, प्रज्ञा टांक ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ अनिल मेहता ने किया।