ये है डाम
डाम का अर्थ गर्म सलाखों से दागना होता है। अंधविश्वास के चलते लोग सेहत ठीक करने के लिए अक्सर आदिवासी लोग भोपों के पास जाकर डाम लगवाते हैं। इससे बहुत पीड़ा तो होती ही है, वहीं नन्हे बच्चों की तो जान पर बन आती है।
युवाओं ने कहा…
इस अंधविश्वास के बारे में युवाओं का कहना है कि ये बहुत बड़ी कुप्रथा है जो आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित है। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। लोकेश व गोविंंद व्यास ने बताया कि इस बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए। उन्हें इसके बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। जब तक ये अंधविश्वास दूर नहीं किया जाएगा। ऐसे मामले बढ़़ते ही जाएंगे और कई लोग अपनी जान गंवा देंगे।
READ MORE : पांच सौ रुपए की रिश्वत लेने वाले सरकारी स्कूल के बाबू को न्यायालय ने सुनाई एक वर्ष की कैद 6 माह में आया सातवां मामला 1. परतापुर क्षेत्र के लोहरियापाड़ा गांव की है। 15 फरवरी को एक 10 माह के माता-पिता ने बच्चे को तान की समस्सया से निजात पाने के लिए डाम दिलवाया। इस मामले में हैरत वाली बात ये है कि बच्चे के माता-पिता निरक्षर नही थे।
2. गनोड़ा क्षेत्र में एक साल के बच्चे के बुखार आने पर उसकी दादी एवं अन्य परिजनो ने बच्चे को पेट में तीन जगज दाम दिलवाया। तबियत में सुधार न होने पर उसे एम् जी लाये जहां से उसे उदयपुर भेज दिया गया।
3. बोडी गामा के हमीरपुरा गांव में एक 15 माह के बच्चे को पेट पर डाम दिया गया। तबियत बिगड़ने पर एमजी अस्पताल लेकर पहुंचे। 4. बागीदौरा इलाके में एक बच्चे की तबियत बिगड़ने पर उसको नानी और घर के एक अन्य बुज़ुर्ग ने अगरबत्ती से बच्चे के माथे पर दाग दिया। तबियत बिगड़ने पर एमजो अस्पताल लेकर पहुंचे।
5 .जून माह में घोड़ी तेजपुर क्षेत्र में भोपे ने 10 माह के मासूम को बीच बाजार में लगाया था डाम। मासूम की कई दिन उपचार के बाद गत दिनों हो चुकी मोत 6. पाटन थाना क्षेत्र के भाईड़ा गांव में महज तीन माह के मासूम का कलाई पर दाग दिया गया। बच्चे की हालत में सुधार न होने पर परिजन उसे महात्मा गांधी अस्पताल लेकर पहुंचे। इस मामले में बाल आयोग ने सज्ञान भी लिया लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नही हुई।