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उदयपुर में जैन समाज के धार्मिक आयोजनों में जुटे धर्मप्रेमी, धार्मिक स्थलों पर मुनिजनों ने दिए व्याख्यान

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उदयपुरOct 12, 2018 / 01:38 pm

Sushil Kumar Singh

JAIN SAMAJ

पाली में जैन संतों के प्रवचन सुनते श्रद्धालु।

उदयपुर. आचार्य शिवमुनि के सान्निध्य में महाप्रज्ञ विहार में शिविरार्थियों को आत्म ध्यान कराया गया। आचार्य ने कहा कि आत्मा सर्वशक्ति मान है। यह सर्व गुण सम्पन्न है। हम अज्ञानता वश देह को ही सब कुछ मान लेते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मा को किसी बाहरी पुदगल की जरूरत नहीं है। देह का सुख मिथ्या सुख है। आत्मा सभी जीवों में होती है। आत्मा अरिहन्तों में, सिद्धों में है वह आपमें भी है। आत्मा हर जीव में समान रूप से रहती है। आत्मा के लिए पुरुषार्थ करों। युवा आचार्य महेंद्र ऋषि ने बताया कि जीवन में विनय बुद्धि की साधना जरूरी है। चातुर्मास संयोजक वीरेंद्र डांगी ने बताया कि आचार्यश्री के सान्निध्य में चल रहे ध्यान शिविर में हिस्सा लेने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से शिविरार्थी पहुंचे हैं।
भाइयों का प्रेम हो राम-लक्ष्मण जैसा
हुमड़ भवन में आयोजित धर्मसभा में सुमित्रसागर महाराज ने कहा कि भगवान के पास जो जैसी भावना लेकर जाता है। उसकी भावना अनुरूप ही उसका कार्य होता है। उन्होंने कहा कि भाइयों में राम-लक्ष्मण की तरह प्रेम होना चाहिए। सगे भाइयों में कभी भी स्त्री के राग से परस्पर विध्वंस नहीं होना चाहिए।भाई की धन सम्पदा तो छीन सकते हो, लेकिन उसका भाग्य नहीं छीन सकते। सकल दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत ने बताया कि 108 सौधर्म इन्द्रों के द्वारा चमत्कारिक सहस्रनाम विधान अनवरत जारी है। मंजू गदावत ने बताया कि प्रात: पूजा,अभिषेक, शांति धारा एवं विधान पूजन हुआ।
हृदयहीन करता है व्यर्थ खर्चा
मुनि शास्त्रतिलक विजय ने कहा कि बेटे की शादी के लिए लाखों का खर्च करें और भगवान के महोत्सव के लिए कुछ न करें। बेटा विदेश से आ रहा है तो एयरपोर्ट लेने जाएंगे। धर्मगुरु विहार करने आ रहे है तो गांव के बाहर भी लेने न जाएं। इसका मतलब हुआ कि संबंधित व्यक्ति हृदय विहिन है।
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हस्त रेखाओं का है महत्व
आयड़ तीर्थ पर आचार्य यशोभद्र सूरिश्वर की निश्रा में गुरुवार को ज्योतिष की कक्षा में जिज्ञासुओं को अवकहडा यंत्र तथा वर्ग मैत्री का शिक्षण दिया गया। साथ ही स्वलिखित जैन हस्त रेखा ग्रंथ के आधार पर मुख्य रेखाओं तथा ग्रहों का प्रत्यक्ष दर्शन कराया गया। इस मौके पर आचार्य ने विचार व्यक्त किए।
सोच बदलना आवश्यक
जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ के तत्वावधान में आराधना भवन में पन्यास प्रवर श्रुत तिलक विजय ने धर्मसभा में कहा कि सुख-दु:ख की संवेदना का संबंध बाह्य सामग्री के साथ नहीं होकर आंतरिक सोच से है। आपकी सोच गलत दिशा में है तो पसंदीदा सामग्री पास होते हुए भी दु:ख का संवेदन होता है और यदि सही दिशा में आपकी सोच चल रही है तो बाह्य सामग्री खराब मिलने पर भी सुख का संवेदन हो सकता है।
साधना का सूत्र समता
आयड़ वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान के तत्वावधान में ऋषभ भवन में मुनिश्रेष्ठ प्रेमचंद ने धर्मसभा में कहा कि साधना का एक सूत्र है-समता, जो समता के क्षण का अनुभव करता है। वह परमात्मा का दर्शन करता है। समता का दर्शन परमात्मा का दर्शन है। जो व्यक्ति समता की साधना करता है, वह परमात्मा की आराधना करता है।

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