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उदयपुर

#killbluewhale PATRIKA CAMPAIGN: ब्लू व्हेल के शिकंजे से बचने में ये गेम्स हो सकते हैं सहायक, पढ़ें, समझे और रहें सचेत 

किलर गेम बन चुका ब्लू व्हेल चैलेंज पूरी दुनिया के लिए खौफ बन चुका है। ये गेम बच्चों के मन-मस्तिष्क पर इस कदर हावी हो गया है. 

उदयपुरSep 15, 2017 / 01:27 pm

madhulika singh

#killbluewhale: These games can be helpful in avoiding blue whale game

blue whale game challenge

उदयपुर. किलर गेम बन चुका ब्लू व्हेल चैलेंज पूरी दुनिया के लिए खौफ बन चुका है। ये गेम बच्चों के मन-मस्तिष्क पर इस कदर हावी हो गया है कि उसके चंगुल से उन्हें निकालना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। जोधपुर में ब्लू व्हेल चैलेंज के कारण हुए हादसे में कुछ ऐसा ही हुआ। कायलाना झील में कूदी बच्ची को जब बचा लिया गया तो उसने अस्पताल में भी गोलियां खाकर खुदकुशी करने की कोशिश की। हालांकि अब डॉक्टरों की देखरेख में उसकी हालत में काफी सुधार हो चुका है। लेकिन, सोचने वाली बात ये है कि आखिर, क्यों बच्चे ऐसे गेम्स के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, क्या उनके पास गेम्स के नाम पर सिर्फ यही खूनी खेल बचा है।
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इस बारे में राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय की व्याख्याता डॉ. वर्तिका जैन कहती हैं, ब्लू व्हेल गेम के कारण हो रही घटनाओं को हादसा नहीं कह सकते, क्योंकि हादसे तो अचानक होते हैं इसलिए यह जानना आवश्यक है कि कैसे एक गेम आपके मस्तिष्क पर इतना हावी हुआ जा रहा है। बच्चे जहां अभिभावकों का कहना मानने में विरोध कर लेते हैं पर क्यों उस गेम से हुई दोस्ती में दिए कार्यों को निभाने के लिए इतने प्रतिबद्ध हैं। बदलते दौर में मां-बाप दोनों ही कामकाजी होने लगे, संयुक्त परिवार का ढांचा टूटने लगा और ऐसे में बचपन अकेला रह गया। परन्तु उस अकेलेपन में भी उसका साथ निभाया टेक्नोलॉजी ने और धीरे-धीरे वह टेक्नोलॉजी उसका सबसे अच्छा मित्र बन गई।

वे कहती हैं, आउटडोर गेम्स बच्चे के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं इसलिए खुले मैदान में खेले जाने वाले खेल और मोबाइल या वीडियो गेम की बराबरी कभी नहीं हो सकती। बचपन के वो सारे खेल जैसे विष-अमृत, छुपन-छुपाई, कोड़ामार, चिप्पस, चंगा-बत्ती, गिल्ली-डंडा, सितोलिया, मारदड़ी, लंगड़ी टांग या अन्य कई खेल आज विलुप्त होने के कगार पर हैं। आज कंक्रीट के इन जंगलों में ना तो खुले मैदान बचे हैं और ना ही इन खेलों को खेलने के लिए दोस्तों की टोली और कहीं यदि बच्चे खेलने जाना भी चाहे तो कई तरह के दबाव तले जा नहीं पाते। विद्यालयों में जरूर सह-शैक्षणिक गतिविधियों में बच्चा सक्रिय होता है पर वहां भी एक अलग प्रकार की प्रतिस्पर्धा उस पर दबाव डालती है।
ऐसे में बच्चों को फिर से इन आउटडोर गेम्स के प्रति जागरूक करें। आज सभी अभिभावकों के आत्मविश्लेषण का समय है। बचपन को जरूरत है समय देने की, वार्तालाप की, आपसी रिश्तों को सहेजने की, मित्रता निभाने की, बिना किसी दबाव के जीवन में आगे बढऩे की स्वतंत्रता की और साथ ही सबसे अधिक जरूरत है यह सिखाने की कि कैसे टेक्नोलॉजी का सदुपयोग और विवेक सम्मत उपयोग किया जाए।

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