इस बारे में राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय की व्याख्याता डॉ. वर्तिका जैन कहती हैं, ब्लू व्हेल गेम के कारण हो रही घटनाओं को हादसा नहीं कह सकते, क्योंकि हादसे तो अचानक होते हैं इसलिए यह जानना आवश्यक है कि कैसे एक गेम आपके मस्तिष्क पर इतना हावी हुआ जा रहा है। बच्चे जहां अभिभावकों का कहना मानने में विरोध कर लेते हैं पर क्यों उस गेम से हुई दोस्ती में दिए कार्यों को निभाने के लिए इतने प्रतिबद्ध हैं। बदलते दौर में मां-बाप दोनों ही कामकाजी होने लगे, संयुक्त परिवार का ढांचा टूटने लगा और ऐसे में बचपन अकेला रह गया। परन्तु उस अकेलेपन में भी उसका साथ निभाया टेक्नोलॉजी ने और धीरे-धीरे वह टेक्नोलॉजी उसका सबसे अच्छा मित्र बन गई।
वे कहती हैं, आउटडोर गेम्स बच्चे के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं इसलिए खुले मैदान में खेले जाने वाले खेल और मोबाइल या वीडियो गेम की बराबरी कभी नहीं हो सकती। बचपन के वो सारे खेल जैसे विष-अमृत, छुपन-छुपाई, कोड़ामार, चिप्पस, चंगा-बत्ती, गिल्ली-डंडा, सितोलिया, मारदड़ी, लंगड़ी टांग या अन्य कई खेल आज विलुप्त होने के कगार पर हैं। आज कंक्रीट के इन जंगलों में ना तो खुले मैदान बचे हैं और ना ही इन खेलों को खेलने के लिए दोस्तों की टोली और कहीं यदि बच्चे खेलने जाना भी चाहे तो कई तरह के दबाव तले जा नहीं पाते। विद्यालयों में जरूर सह-शैक्षणिक गतिविधियों में बच्चा सक्रिय होता है पर वहां भी एक अलग प्रकार की प्रतिस्पर्धा उस पर दबाव डालती है।