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उदयपुर

किसान आंदोलन की लहर पहुंची उदयपुर में, महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा गांव से दूध और अनाज को नहीं जाने देंगे बाहर

उदयपुर आए महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि आंदोलन के तहत अब गांव से सब्जी, दूध और अनाज बाहर नहीं जाएगा। बोले-प्रदेश और केन्द्र की सरकार किसान विरोधी है। किसानों को हक की जगह गोली दी गई है।

उदयपुरJun 10, 2017 / 08:32 am

madhulika singh

मध्यप्रदेश से उठी किसान अंादोलन की आंच इसके पड़ोसी राज्यों में भी असर दिखा सकती है। मंदसौर में किसान आंदोलन के खूनी संघर्ष के बाद अब राजस्थान में इसे तेज करने के प्रयास शुरू हो गए हैं। किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मंदसौर आंदोलन का जायजा लेने के बाद प्रदेश में शृंखलाबद्ध गांव बंद आंदोलन का ऐलान कर दिया है।
 उदयपुर आए महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि आंदोलन के तहत अब गांव से सब्जी, दूध और अनाज बाहर नहीं जाएगा। बोले-प्रदेश और केन्द्र की सरकार किसान विरोधी है। किसानों को हक की जगह गोली दी गई है। जाट ने कहा कि 16 जून को दिल्ली में तमाम किसान संगठनों की बैठक कर देशव्यापी किसान आंदोलन छेडऩे की रणनीति बनाई जाएगी।
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किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने दो दिन तक मंदसौर में रहकर मृतक किसानों के परिवारों से मुलाकात की। शुक्रवार को उदयपुर आकर वे पुन: कोल्हापुर के सांसद और किसान नेता राजू सेठी के साथ मंदसौर के लिए रवाना हुए। उदयपुर प्रवास के दौरान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि मंदसौर के पिपलिया मंडी में किसानों के अंादोलन को गोली के दम पर कुचलने की कोशिश की। यह शासन प्रशासन की घोर लापरवाही थी। 
छोटी सी घटना को समय रहते सुलझा नहीं पाने से इतना बड़ा कांड हुआ। ऊपर से सरकार की ओर से गैर जिम्मेदाराना बयान देकर किसानों को भड़काया गया। जाट ने कहा कि मंदसौर की घटना के बाद राजस्थान में किसान आंदोलन तेज होगा। किसान अपने गांव से न दूध, सब्जी और अनाज गांव के बाहर भेजेंगे और ना ही खुद बाहर जाएंगे। यह अंादोलन सत्य, शांति और अहिंसा के आधार पर चलेगा। जाट के साथ महापंचायत के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घासीराम भगोडिय़ा, प्रदेशाध्यक्ष अजीतसिंह, किसान नेता शंकरलाल अहीर भी मौजूद थे। 
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कर्मचारी-किसान में किया भेद

जाट ने कहा कि किसान कृषि लागत मूल्य के ऊपर 50 प्रतिशत लाभांश की मांग कर रहे हंै। केन्द्र की सरकार चुनावी वादे करके इस पर मुकरी है। जिससे हालात बिगड़ रहे हंै। जिस देश में कर्मचारी, किसान मे भेद होगा वहां यही हाल होंगे। कर्मचारियों को 7वां वेतन आयोग दे दिया गया जबकि राष्ट्रीय किसान आयोग की 2006 में आई रिपोर्ट में इसे 2007 से लागू करने को कहा गया पर अभी तक इसमें कृषि नीति बनाने के अलावा ज्यादा कुछ नहीं हुआ। 

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