मैरीकॉम का भार वर्ग बनेगा मिसाल
जल्द ही दो नए भार वर्गों में हो सकेगी अन्तरराष्ट्रीय बॉक्सिंग: संधु
द्रोणाचाार्य पुरस्कार प्राप्त संधु से विशेष बातचीत
– द्रोणाचाार्य पुरस्कार प्राप्त संधु से विशेष बातचीत भुवनेश पंड्या
उदयपुर. वह दिन दूर नहीं जब हम पूरी दुनिया को बॉक्सिंग रिंग में मात दे देंगे। अभी बॉक्सिंग का माहौल बन रहा है। यह बात द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त भारत के पूर्व मुख्य प्रशिक्षक (बॉक्सिंग) जीएस संधु ने कही। पत्रिका से विशेष बातचीत में संधु ने कहा कि जल्द ही दो नए विश्व बॉक्सिंग में दो नए भार वर्ग शुय हो सकते हैं, अभी उन पर विचार चल रहा है। खास बात ये कि इनमे ंसे एक भार वर्ग मैरीकॉम का है। मैरीकॉम वल्र्ड चैम्पियनशिप में अपने तय भार ४८ से अधिक ५१ भार वर्ग से मजबूरी में खेलती है, इससे उसे नुकसान होता है, यदि उसका तय भार वर्ग ४८ शुरू हो जाए तो हम इस बार ऑलम्पिक में स्वर्ण पदक हासिल कर पाएंगे। इसके साथ ही एक और भार वर्ग नया आने वाला है, हालांकि फिलहाल उस पर मुहर लगना बाकी है। कई देश अपने-अपने विचार रखेंगे। इसके बाद यह तय होगा। अब तक —- पूर्व राष्ट्रीय मुख्य बॉक्सिंग प्रशिक्षक जीएस संधु ने कहा कि हम कुछ समय पहले टॉप टेन में थे २०१० के एशियन व कॉमनवैल्थ में पहले स्थान पर थे, चीन के बराबर हमारे मेडल व अंक थे। हमने ऑलम्पिक में भी पदक लिया है। हमारे बॉक्सर ने वल्र्ड चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक भी लिया है। इस कॉमनवैल्थ गेम में लड़कियों में और एशियन गेम्स में कोई मेडल नहीं है। हमारी परफोरमेंस गिरी है। मैंने अब कोचिंग छोड़ दी है। हमारे प्रेसिडेंट अजयसिंह पूरी मेहनत कर रहे हैं। जल्द ही हम अब बेहतर स्थिति में आ जाएंगे। कुछ समय से महिलाओं ने बॉक्सिंग में जो कदम बढ़ाएं है इसका खास कारण मैरीकॉम हैं, क्योंकि उसने विपरित परिस्थितियों में नाम किया। अब वह मुकाम तक पहुंच गई है। पहले लड़कियोंमें ५१, ५४ और ६० किलोग्राम भार वर्ग में बॉक्सिंग होती थी, मैरीकॉम वल्र्ड चैम्पियनशिप में ४८ किलोग्राम में विजेता रही है। ५१ भार करना पड़ता है, एेसे में उसे नुकसान होता है। इस बार संभवतया ४८ किलोग्राम और एक अन्य भार वर्ग इसमें जुड़ जाएगा। यदि ४८ किलोग्राम भार वर्ग नया शुरू हो गया तो हम इस बार ऑलम्पिक में हमारा स्वर्ण पदक पर कब्जा होगा। फिलहाल इस पर विचार हो रहा है, जल्द ही इस पर मुहर लग सकती है। सरकार हमें बहुत सुविधा दे रही है। हरियाणा सरकार ने कई साल पहले खिलाडि़यों को अच्छा पैसा व नौकरी देकर आगे बढ़ाया तो नई पौध इसमें जुडने की ओर बढ़ी है। भारत अभी तक खेल देश नहीं बन पाया है। ये तब ही संभव है जब हर व्यक्ति खेल से लेकर अन्य मैदानों तक सुबह पहुंचे। कई देश बकायदा खेलों में आगे बढे़ हैं, इसका कारण है कि वहां खेल का माहौल नींव से बनाया है। खेल मेडल के लिए नहीं खेले जाते, बल्कि खेलों में बेहतरी के बाद स्वत: ही मेडल आ जाते हैं।
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