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उदयपुर

World Heritage Day : 25 लाख रुपये खर्च कर सदियों पुरानी धरोहर के संरक्षण में जुटे इस गांव के लोग

मेवाड़ मे विरासत के संरक्षण, संवर्द्धन और जीर्णोद्धार की परम्‍परा सदियों पुरानी है। मेवाड़ के इतिहास में मेनार गांव प्रतिष्ठा, मर्यादा एवं गौरव का प्रतीक सम्बल है। उपत्यकाओं के परकोटे सामरिक दृष्टिकोण के अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। मेवाड़ अपनी समृद्धि, परम्परा, अधभूत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है।

उदयपुरApr 18, 2019 / 12:25 pm

Sikander Veer Pareek

Illustrations of the misery of the neglected heritage

उपेक्षित विरासत की दुर्दशा के दर्शन

उमेश मेनारिया/मेनार. मेवाड़ मे विरासत के संरक्षण, संवर्द्धन और जीर्णोद्धार की परम्‍परा सदियों पुरानी है। मेवाड़ के इतिहास में मेनार गांव प्रतिष्ठा, मर्यादा एवं गौरव का प्रतीक सम्बल है। उपत्यकाओं के परकोटे सामरिक दृष्टिकोण के अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। मेवाड़ अपनी समृद्धि, परम्परा, अधभूत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है। ऐसे ही मेनार गांव को उसके संस्कृति, मुग़लों से युद्ध की अभिरक्षा के लिए इस गांव के ब्राह्मण समाज ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिए सदा स्मरण किया जाता है। (FILE PHOTO)
यहां की सांस्कृतिक विरासत अतुल्य है। इस गांव के लोगों ने समय के साथ साथ सुविधाओं को विकसित किया है। चाहे वो धार्मिक स्थल हो, विशाल तालाब, विद्यालय की इमारत, चिकित्सा भवन या फिर सार्वजनिक भवन हो सभी जनसहभागिता भामाशाहों एवं जनसहयोग की बदौलत अस्तित्व में आए है। पुराने मंदिरों की नींव रखी इसी के साथ अब ग्रामीणों का एक और अनूठा कार्य इसमें जुड़ गया है अब गांव वालों ने प्राचीन संस्कृति विरासत (World Heritage Day) सैकड़ों साल पुराने मन्दिर को जर्जर होने से बचाने का जिम्मा उठाया है। मेनार कस्बे के बीचोबीच पहाड़ी पर स्थित करीब 600 साल पुराने ठाकुर जी कृष्णमन्दिर मंदिर के जिर्णोद्धार का बीड़ा उठाया है। कृष्ण जन्माष्ठमी के अवसर पर आज हम ऐसे कृष्ण मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी नींव आज से करीब 600 वर्ष पूर्व रखी गयी थी। जिसे बनाने मे 97 वर्ष लगे थे। नागर शैली में बना यह मंदिर उदयपूर स्थापना से पूर्व का है ।
मन्दिर का इतिहास :

राणा लखा के समय बने इस मंदिर को बनने में लगे थे 97 वर्ष दो सरोवरों एवम् गाँव के बीचोबीच ऊंची पहाड़ी पर स्थित इस कृष्ण मन्दिर ( ठाकुर जी मन्दिर ) को बनने मे 97 साल लगे थे। 1325 के मे इस मंदिर निर्माण का मुहर्त हुआ नींव रखी गई जो 97 साल बाद जाके 1425 मे पूरा हुआ। मन्दिर का निर्माण कार्य राणा लखा के समय पूर्ण हुआ था। हर दृष्टिकोण मन्दिर सुरक्षित जगह पर बना है। जमीन लेवल से 10 फिट तक उंच्छा चबूतरा बना फिर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया गया था। मंदिर की बनावट देखते ही बनती है ऊंचे चबुतरे पर बना यह मंदिर क्षेत्र में सबसे ऊंचा मन्दिर है। मंदिर के ठीक सामने बने ओंकारेश्वर पर बैठे बैठे ही ठाकुर जी के दर्शन हो जाते है। वहीं मंदिर के ध्वजा चढ़ाई का उलेख प्राचीन समय के सूरह लेख पर मिलता है। गांव का प्राचीन मंदिर जब कहीं कहीं से जर्जर होने की कगार पर आया तो ग्रामीणों ने इसके मरमत जिर्णोद्धार के लिए पंचों की बैठक हुई, जिसमें इस प्राचीन धरोहर एवं गांव की आस्था के प्रमुख मन्दिर को बचाने हेतु सर्व निर्णय पर इसके जीर्णोद्धार का बीड़ा ग्रामीणों ने उठाया। मंदिर को पूरा नया बनाने के लिए करीब 25 लाख रुपए तक खर्च करने का अनुमान लगाया गया। वहीं 2019 दिसम्बर तक कार्य पुरा होने की सम्भावना है। मन्दिर को नया रूप दिया जा रहा है पत्थर की गिसाई, मरमत, नए पत्थर तक लगाने कार्य किया जा रहा है। कारीगर दिन रात काम कर रहे हैं जिसमें पत्थर वाले पूरे परिसर में मार्बल लगाया जाएगा। वहीं प्रवेश द्वार परिसर विस्तार, द्वार सहित अनेक कार्य शामिल है। मंदिर निर्माण मे खर्च राशि जनसहयोग, सामूहिक आयोजनों से एकत्रित की गई है।
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