इलाहाबाद विवि के नेशनल सेन्टर ऑफ एक्सपेरिमेंटल मिनरोलॉजी एवं पेट्रोलियम के निदेशक प्रो जयन्त कुमार पति ने पत्रिका से विशेष बातचीत में बताया कि जो उल्कापिंड रामगढ़ से टकराया था, वह उसे यूरेनियम का ख़ज़ाना देकर गया है। उन्होंने बताया कि रामगढ़ में कई वैज्ञानिकों ने सर्वे किया है। रामगढ़ स्ट्रक्चर (धरती का उठा हुआ हिस्सा) की ाोज में हर बात स्पष्ट हो चुकी है, लेकिन इस पर अंतिम मुहर इसलिए नहीं लगी है, क्योंकि साफ़्ट फीचर अब तक नहीं मिलने से प्रमाणिकरण नहीं हुआ है।
३८०० मिलियन वर्ष पूर्व टकराया उल्कापिंड मोहनलाल सु ााडि़या विवि के ाू विज्ञान वि ााग की ओर से आयोजित कार्यशाला में आए प्रो जयन्त कुमार ने बताया कि एक अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिक दल रामगढ़ में जरूरी जांच कर चला गया है, जल्द ही हमें ाुश ाबर मिलने वाली है। महाराष्ट्र का लोनार, मध्यप्रदेश का शिवपुरी का ढाला स्ट्रक्चर और अब राजस्थान का रामगढ़ का उल्कापिंड गिरने की वजह से दुनिया में नाम हुआ है। ३८०० मिलियन वर्ष पूर्व यहां उल्कापिंड टकराया था। वर्ष १८५८ से पहले से ही इस पर ाोज जारी है।
रामगढ़ जैसी स्थिति कहीं नहीं उन्होंने बताया कि रामगढ़ जैसा कहीं नहीं है। इसे चारों ओर से पहाड़ ने घेरा हुआ है। बीच में कुछ उठा हुआ हिस्सा है। पत्थर एेसे ाडे़ हैं, जिसे दे ाकर आसानी से कहा जा सकता है कि इस पर कोई तेज टकराहट हुई है। शिवपुरी में पिघला हुआ ग्रेनाइट है। यह जमीन में छह किलोमीटर तक बह चुका है, जिसे उल्कापिंड की टक्कर वाला विश्व का सबसे पुराना क्षेत्र बताया जा रहा है, जल्द ही इस पर मुहर लगेगी। उन्होंने साइंस जनरल का हवाला देते हुए कहा कि लोनार में उल्का पिंड टकराने से गैस निकली। इसके चलते पुरातनकाल में वहां डायनोसोर की प्रजाति समाप्त हुई।
—– क्या हैं उल्कापिंड अन्तरिक्ष से कभी-कभी आकाशीय पिंड पृथ्वी पर गिरते हुए दिखाई देते हैं उन्हें उल्का और साधारण बोलचाल में टूटता तारा कहा जाता है। ये वायुमंडल में प्रवेश करते समय जल उठते हैं, लेकिन कुछ बचकर पृथ्वी तक पहुंच जाते हैं, उसे उल्कापिंड कहा जाता है। हर रात अनगिनत उल्काएं देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी तक पहुंचने वाले पिंडों की सं या कम होती है