गौरतलब है कि 6 जुलाई को अंतिम बारिश
monsoon rain In Rajasthan के बाद 14 दिन रीते निकल गए। ऐसे में खेतों में बुवाई कर चुके किसान मानसून की बेरुखी से चिंतित हैं। क्षेत्र में हुई खण्ड वृष्टि के बाद आषाढ़ का अंतिम दिन सूखा बीत गया। हालांकि, सावन महीना शुरू हो गया है, लेकिन बारिश का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है। जुलाई का आधा महीना बीत चुका है और जलाशय अब भी रीते हैंं। मेनार के जलाशय में बारिश इतनी भी नही हो पाई की तालाब के खड्डे भी भर सके। इधर, मौसम विभाग
IMD ने आगामी दिनों में हल्की बारिश की संभावना जताई है।
इधर, इंद्रदेव व मेघों की बेरुखी के कारण क्षेत्र के धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। तकरीबन 1 माह का समय बीत जाने के बाद क्षेत्र में पसीने से सींच कर खेतोंं में तैयार की गई खरीफ की फसल सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है। किसानों ने बताया कि कुछ और दिनों तक यदि अच्छी बारिश नहीं हुई तो सारी फसलें पूरी तरह से जल जाएगी।
गौरतलब है कि शुरुआती दिनों में प्री-मानसून
Pre monsoon के दौरान कोटड़ा सहित आसपास के क्षेत्रों में हुई अच्छी बरसात के बाद क्षेत्र के सभी किसानों ने खेतों में हल जोतकर बुआई के लिए बीज डाल दिया। उसके बाद कभी कभार हुई बरसात के कारण बीजों ने अंकुर के रूप ले लिया। वर्तमान में मक्का की फसल का पौधा 1 से 2 फीट ऊपर तक आ चुका है। ऐसे में इस फसल को पानी की अत्यधिक आवश्यकता है। क्षेत्र में होने वाली कुल खेती में से महज 150 हेक्टर क्षेत्रफल ही ऐसा है जहां कुओं, नदियों व अन्य स्रोतों से सिंचाई कर फसल को बचाया जा सकता है। जबकि वर्ष 2018 के आंकड़ों के अनुसार पूरे उपखंड क्षेत्र में लगभग 17 हजार 358 हेक्टर में खरीफ की बुआई की जाती है।
बीते 5 वर्षो में सबसे कम वर्षा इस साल पिछले 5 वर्षो के आंकड़े देखे जाए तो 1 जनवरी से लेकर 18 जुलाई तक होने वाली बरसात Monsoon Rain के मुकाबले इस वर्ष महज 242 मिमी बरसात दर्ज की गई है। जबकि 2018 में 329 मिमी, 2017 में 454 मिमी, 2016 में 282 मिमी और 2015 सबसे अधिक 1080 मिमी रिकॉर्ड बरसात हुई थी।