नियमानुसार छात्र कोष या विकास कोष की राशि का उपयोग छात्र हित में ही करना होता है। ग्रीन बोर्ड, रंग रोगन, फर्नीचर, शौचालय, बिजली व्यवस्था, प्रयोगशाला, कम्प्यूटर लैब और खेलकूद पर यह राशि खर्च होनी चाहिए। अन्य खर्च के लिए रमसा (राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान) मद में राशि मिलती है।
एक बानगी:
– राउमावि असलीगढ़ के प्रधानाचार्य मोहनलाल गौड़ का कहना है कि हम वेतन बिल बनाने के लिए मजबूरी में इस राशि का उपयोग कर रहे हैं। हमारे यहां आईसीटी लैब है, लेकिन नेट इतना स्लो है कि पे-मैनेजर पर काम नहीं हो पाता। इसके लिए कोई अलग से बजट नहीं है, इसलिए छात्र कोष से राशि लेनी पड़ती है।
– रामावि नयाखेड़ा के प्रधानाध्यापक दिनेश दशोरा का कहना है कि ये बिल स्वयं बनाना संभव नहीं है। स्कूल में इस स्तर का कम्प्यूटर का कोई काम नहीं जानता, तो क्या करें।
– राउमावि सीसारमा के प्रधानाचार्य लोकेश भारती का कहना है कि बिना बजट के ये कार्य छात्र कोष की राशि से ही हो रहा है। लिपिकों को चाहिए कि वे बिल बनाने के इस कार्य में स्वयं दक्ष होकर पूर्ण करें।
कई स्कूल ये तर्क देते हैं कि उनके यहां नेट की गति कम होने से पे-मैनेजर पर काम नहीं हो पाता है। ऐसे में इन बिलों को बाहर से बनवाना होता है।
कई स्कूलों के लिपिकों को पे-मैनेजर का प्रशिक्षण ही नहीं दिया गया है, ऐसे में उन्हें बिल बनाने नहीं आता।
बच्चों के हक का पैसा खर्चने पर सवाल खड़े होते हैं। सरकार भी मानती है कि इसके लिए किसी बजट की जरूरत नहीं है तो स्पष्ट है कि यह काम लिपिक वर्ग को करना है या प्रधानाचार्य या प्रधानाध्यापक पूर्ण करवाए।
छात्र कोष से यदि वेतन बिल बनाने के लिए राशि ली जा रही है, तो यह नियम विपरीत व गलत है। इसे तुरंत रोकना होगा। इसके लिए रमसा से बजट जारी होता है।
नरेश डांगी, जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक प्रथम