नाटक की कहानी भगवान नाम के एक किरदार के आस-पास घूमती है, जो एक पॉकेटमार है जो एक बार किसी शिकार का पीछा करते हुए एक नाटक देखने चला जाता हैं। नाटक से प्रभावित हो वो आपराधिक दुनिया को छोड़ कर कलाकार बनना चाहता है। फिर नाटक के अलग-अलग निर्देशकों के साथ काम कर नाट्य विधा में निपुण होता और उसके बाद वो अपना ग्रुप बना लेता है परन्तु इसके बाद भी उसका संघर्ष यही खत्म नहीं होता है। उसे एक्टर्स नहीं मिलते वो किसी तरह अपनी ही बिरादरी जैसे छोटे-मोटे चोर उचक्कों को सही राह पर लाकर उन्हें नाटक के लिए तैयार करता है परन्तु इतनी सारी जद्दोजहद के बाद भी उसे नाटक के मंचन के लिए हॉल नहीं मिलता है। जब हॉल मिल जाता तो उसका मालिक उससे पैसे ज्यादा मांगता है जिससे मजबूर होकर वह पुराने पेशे को अपनाने के लिए मजबूर हो जाता है और पकड़ा जाता है परन्तु संयोग से पुलिस इंस्पेक्टर नाट्यप्रेमी निकलता है और उससे नाटक के टिकट खरीद लेता है जिससे उसके हॉल के पैसे मिल जाते और वो भगवान पैसे लाकर उस मैनेजर को देता है जो हॉल के डबल किराया ले रहा है और नाटक के अंत में उसे और उस जैसे लोग जो आम आदमियों को लुटते हैं उन्हें असली पॉकेटमार कहता है।