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उदयपुर

सड़कों पर सुधार के नाम पर ‘सोई सरकार, विभाग मौन, अब किससे करें गुहार

public works department सड़कों की बदहाली से जूझ रहे ग्रामीणों की चिंताएं बढ़ी, उपखण्ड क्षेत्र की 8 सौ किलोमीटर सड़क बदहाल, विभाग नेे केवल 195 किलोमीटर टुकड़े की मरम्मत के भेजे प्रस्ताव

उदयपुरNov 20, 2019 / 11:56 pm

Sushil Kumar Singh

सड़कों पर सुधार के नाम पर 'सोई सरकार, विभाग मौन, अब किससे करें गुहार

सड़कों पर सुधार के नाम पर ‘सोई सरकार, विभाग मौन, अब किससे करें गुहार

उदयपुर/ फलासिया. Public Works Department उदयपुर जिले के दुर्गम और पहाड़ी इलाकों की खराब सड़कों पर मरम्मत को लेकर सरकारी तंत्र में पसरी सुस्ती ग्रामीणों की कमर तोड़ रही है। सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढों पर मरहम के नाम पर जिम्मेदार विभाग और उनके मुखिया मौन हैं। चिंता तो तब और बढ़ जाती है, जब सरकार की ओर से भी आदिवासी बाहुल्य इलाकों की सड़कों की मरम्मत के नाम पर केवल सपने दिखाए जाते हैं। दुर्गम इलाकों में बसे झाड़ोल और फलासिया जैसे इलाकों में खराब करीब 800 किलोमीटर सड़क मार्ग पर सुधार को लेकर स्थानीय लोक निर्माण विभाग के जिम्मेदारी भी कई कलई खोलती दिख रही है। हकीकत में बरसात के दौरान 238 राजस्व गांवों को जोडऩे वाले सड़कों के जाल का एक मीटर टुकड़ा भी ढंग से वाहन चलाने लायक नहीं है। ऐसे में विभाग के जिम्मेदारों की ओर से केवल 195 किलोमीटर टुकड़ों पर ही मरम्मत का मरहम लगाने के लिए बजट मांगने के प्रस्ताव कई सवालों को जन्म दे रहे हैं। खास यह भी है कि अतिवृष्टि के नाम पर आपदा प्रबंधन से तत्काल बजट देने के निर्देशों के बावजूद विभाग ने बरसात के दो माह बीतने के बाद अब तक सड़कों की सुध नहीं ली। व्यवस्था में पसरी खामियों का ही नतीजा है कि यहां केवल सड़क सुधार के नाम पर ही बजट मांगा गया है, जबकि बरसात में खराब हुई पुलियाओं को लेकर किसी भी स्तर पर चिंतन-मनन नहीं हुआ।
आखिर कौन जिम्मेदार
एक ओर सरकार स्तर पर आदिवासी बाहुल्य इलाकों की ग्रामीण आबादी के लिए अतिरिक्त बजट देकर सुविधाएं पहुंचाने के दावे किए जाते हैं, लेकिन दूसरी ओर सत्यता जानने का किसी स्तर पर साहस नहीं जुटाया जाता। हकीकत भी यही है कि खराब हुई सड़कों के बीच दुपहिया सवार लोगों को कमर दर्द जैसी बीमारियां घेर रही हैं। आए दिन चोटिल होने जैसे मामलों के अलावा आगे चलते वाहनों के साथ उड़ती धूल समीपवर्ती लोगों को सांस का रोगी बना रही है। धूल के गुबार के बीच आगे चलते वाहनों से टकराने के मामले भी सामने आते हैं। लेकिन, ग्रामीणों की समस्या को लेकर किसी भी स्तर पर सक्रियता नहीं दिखाई जा रही।
कोटड़ा में ऐसे हाल
पीडब्ल्यूडी कोटड़ा के अधीन सड़कों की बात करें तो रेकॉर्ड के हिसाब से इस क्षेत्र में 1435 किलोमीटर का सड़क तंत्र है। इसमें नेशनल हाई-वे 58 ई, 927 ए के सड़क की लंबाई करीब 177 है। इसमें भी 58 ई हाई-वे पर उदयपुर से फलासिया व सोम होकर गुजरात को जोडऩे वाला करीब 91 किलोमीटर टुकड़ा आए दिन दुर्घटनाओं का कारण बन रहा है।
सब अधिकारी, कौन करे काम
झाड़ोल स्थित अधिशासी अभियंता कायार्लय की बात करें तो यहां अधिशासी अभियंता के अलावा सहायक अभियंताओं का डेरा है। सभी अधिकारी राजपत्रित होने के साथ कार्यालय और व्यवस्था के प्रति जवाबदेह हैं। लेकिन, फिल्ड पर लोगों की समस्याओं के निस्तारण को लेकर सरकारी रेकॉर्ड में दो कनिष्ठ अभियंताओं की स्वीकृति है। दूसरी ओर सच यह है कि दोनों ही पद खाली पड़े हुए हैं। सहायक अभियंता के नाम पर तीन जिम्मेदारों ने मोर्चा संभाल रखा है। इनमें भी एक की पदोन्नति शेष है। इसके बाद एक पद और खाली हो जाएगा। वेलदार के नाम पर 25 कर्मचारी हैं, जो कि अधिकतक दो वर्ष बाद सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
वित्तीय स्वीकृति शेष
झाड़ोल में 16 अगस्त को 122 एमएम बारिश हुई थी। सरकार ने टूटी सड़कों की मरम्मत के लिए प्रस्ताव मांगे थे। तब 195 किलोमीटर लंबाई पर मरम्मत के भेजे गए प्रस्ताव पर प्रशासनिक स्वीकृति मिली है। अभी वित्तीय स्वीकृति आना शेष है।
भूरसिंह, सहायक अभियंता, पीडब्ल्यूडी
सरकार की अनदेखी
हमारी सरकार के कार्यकाल में नेशनल हाई-वे 58 ई का कार्य स्वीकृत कराया था। स्थानीय लोक निर्माण विभाग के अधीन सड़कों पर कोई निर्माण या मरम्मत कार्य नहीं हो रहा है। public works department विभाग और सरकार दोनों ही आम जनता की परेशानी समझने को तैयार नहीं हैं।
बाबूलाल खराड़ी, विधायक झाड़ोल

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