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उदयपुर

श्रीराम से सीखें मुशिकल हालातों में पेशेंट, कॉन्फिडेंट और पॉजिटिव रहना

– रामनवमी, आज जब देश कोरोना महामारी के कारण मुश्किल हालातों से गुजर रहा है तो हर नागर‍िक की क्‍या ज‍िम्‍मेदारी है और क‍िस तरह का व्‍यवहार क‍िया जाना चाह‍िए, ये श्रीरामचंद्र से सीखना चाहिए।

उदयपुरApr 02, 2020 / 01:32 pm

madhulika singh

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उदयपुर. राम के चरित्र की खूबियां आज भी प्रासंगिक हैं और उन खूबियों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। राम ने अपने संपूर्ण जीवन का प्रबंधन अति कुशलता से किया था, जिस कारण हम उन्हें ‘मैनेजमेंट गुरु’ के रूप में भी देख सकते हैं। आज जब देश कोरोना महामारी के कारण मुश्किल हालातों से गुजर रहा है तो हर नागर‍िक की क्‍या ज‍िम्‍मेदारी है और क‍िस तरह का व्‍यवहार क‍िया जाना चाह‍िए, ये श्रीरामचंद्र से सीखना चाहिए। वहीं, जब इन दिनों हर घर में एक बार फिर से रामायण चल रही है तो नई पीढ़ी को भगवान श्रीराम से बहुत कुछ सीखना चाहिए। रामनवमी के अवसर पर प्रस्तुत है, श्रीराम के चरित्र की ऐसी खूबियां जिसे जीवन में अपनाई जानी चाहिए-
1. आत्मविश्वास- गुरुकुल में जब शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं तब राक्षसों द्वारा विघ्नबाधा पहुंचाई जाती है तब आत्मविश्वास दिखाते हैं। शिवजी के धनुष को तोडऩे के समय आत्मविश्वास से भरपूर बैठे होते हैं।
सीख- जीवन में व्यक्ति को आत्मविश्वासी होना बहुत जरूरी है। जब तक आत्मविश्वास होगा तब तक व्यक्ति बड़े से बड़ा पहाड़ तोडऩे में भी सक्षम होता है और आत्मविश्वास नहीं हो तो छोटे से छोटा काम भी पहाड़ के समान लगता है। यह बात सफलता में बाधक बनती है।

2. सकारात्मक रवैया- श्रीराम को जब वनवास , सीता हरण, रावण के युद्ध के समय सीता के अपहरण की जानकारी हुई तो ने विपरीत परिस्थितियों में भी नकारात्मकता अपने अंदर नहीं पनपने दी। उन्होंने इसका सामना सकारात्मक सोच के साथ किया, इसी खूबी ने ही उनको सफलता दिलाई। सीता त्याग के समय राजयोग के प्रति सकारात्मक सोच रखी।
सीख- आज मनुष्य विपरीत परिस्थितियों में जल्द ही घबरा जाता है। जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण नकारात्मक हो जाता है।

3. सौम्य व संयमित व्यवहार- श्रीराम अपने से बड़ों को जितना सम्मान दिया करते थे, उतना ही सम्मान व प्यार छोटों को भी दिया करते थे। उनके लिए सभी व्यक्ति समान थे। उन्हें राजा होने का भी अहम नहीं था। ना ही किसी भी बात पर वे क्रोध किया करते थे। इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।
सीख- व्यक्ति को सभी परिस्थितियों में और सभी से एक सा व्यवहार बनाए रखना चाहिए।

4. धैर्य – सीता स्वयंवर के दौरान श्रीराम के द्वारा शंकर का धनुष तोडऩे के बाद जब परशुराम क्रोधित होकर आते हैं तब बहुत धैर्य धारण किए हुए संयमित रहते हैं। सीता हरण के समय बहुत दु:खी व विचलित होने के बावजूद वे खुद को बहुत संयमित रखते हैं।
सीख- कठिन और विपरीत परिस्थितियों में धैर्य रख कर उनका सामना करना चाहिए।

5. अनुशासन- श्रीराम ने हमेशा अनुशासित जीवन जीया। वे स्वयं अनुशासित रहे और भाई व माताओं को भी अनुशासित रहने की शिक्षा दी।
सीख- जीवन में अनुशासन की पालना मानव को श्रेष्ठ बनाती है।
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6. समर्पण- प्रभु श्रीराम ने वनवास के समय राज्य का त्याग किया। भरत को राजा बनाया। राजधर्म के लिए पत्नी का त्याग किया। इससे बड़ा समर्पण कुछ नहीं हो सकता है।

सीख- हमेशा अपने सुखों के बारे में न सोच कर दूसरों के हित व सुख को भी बराबर महत्व देना चाहिए। इसके लिए अपने सुखों का त्याग करना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए।
7. मर्यादित बातचीत- जब परशुराम संवाद व रावण संवाद हुआ था तब श्रीराम ने हमेशा मर्यादा का पालन किया। उन्होंने कैकेयी व मंथरा के प्रति भी अमर्यादित वचनों का प्रयोग नहीं किया।
सीख- कोई बड़ा हो या छोटा सभी के साथ मर्यादित बातचीत एक सुखद परिणाम देती है। इससे मनभेद व मतभेद जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है।

8. पंक्चुएलिटी- जब श्रीराम को पिता ने 14 साल की वनवास की आज्ञा दी तो वे बिना समय गवाए वनवास के लिए प्रस्थान कर गए, जबकि उस समय दोनों छोटे भाई भरत-शत्रुघ्न ननिहाल गए हुए थे और अपने भाइयों के लौटने तक का इंतजार उन्होंने नहीं किया।
सीख- यदि हम समय की कद्र करेंगे तो समय स्वत: ही हमारी मदद करता है।

9. आकर्षक व्यक्तित्व- जब श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया तो बाल श्रीराम के आकर्षक व्यक्तित्व की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई। जैसे-जैसे वे बढ़े हुए, वैसे-वैसे उनका व्यक्तित्व और अधिक आकर्षक हो गया। जब वे सीता के स्वयंवर में गए तब सीता ने उन्हें बाग में देखते ही वर रूप में चुन लिया था।
सीख- अगर आपकी पर्सनेलिटी इम्प्रेसिव है तो आप किसी को भी इम्प्रेस कर सकते हैं। पहला प्रभाव आकर्षक व्यक्तित्व का ही पड़ता है। कहा भी जाता है, फस्र्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन। पर्सनेलिटी को अट्रेक्टिव बनाने में ड्रेसिंग सेंस भी अहम होता है।

10. निर्णय क्षमता- श्रीराम ने अपने जीवन में बहुत कठोर निर्णय लिए। उन्होंने सुग्रीव की मदद कर बाली से दुश्मनी ले ली थी, वहीं विभीषण का राजतिलक करना व सीता का त्याग राजधर्म के लिए करना भी निर्णय क्षमता के उदाहरण हैं।
सीख- निष्पक्ष निर्णय क्षमता सुपरिणामों की नींव होती है।

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