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RUCHITA JAIN MURDER CASE: न्यायालय ने दिव्य को लेकर अब कही ये बात, आवेदन किया खारिज

उदयपुर.न्यायालय ने आरोपित के पिता की ओर से पेश आवेदन को खारिज कर दिया।

उदयपुरDec 06, 2017 / 11:10 am

Mohammed illiyas

उदयपुर . बहुचर्चित रुचिता जैन हत्याकांड के आरोपित दिव्य कोठारी की दिमागी हालत को सही मानते हुए चित्तौडगढ़़ जिला एवं सेशन न्यायालय ने आरोपित के पिता की ओर से पेश आवेदन को खारिज कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट लिखा कि दिव्य पूछे गए प्रश्नों का सोच-समझकर सही जवाब दे रहा है, ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि वह विकृतचित्त है और अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ हो। अब दिव्य के खिलाफ हत्या का मामला यथावत चलेगा और गवाहों के बयान होंगे।

ऑर्बिट अपार्टमेंट हाल मालदास स्ट्रीट निवासी दिव्य उर्फ किट्टू के पिता अरविंद कोठारी ने चित्तौडगढ़़ न्यायालय ने प्रार्थना-पत्र पेश कर बताया कि दिव्य के विरुद्ध हत्या का मामला विचाराधीन है। 9-10 माह से वह मानसिक अवसाद में होकर उपचाररत है। प्रकरण में अनुसंधान के दौरान पुलिस ने भी दिव्य की मानसिक स्थिति के संबंध में बयान दिए थे लेकिन अब पुलिस उसे विधिक लाभ से वंचित करने के लिए इलाज के दस्तावेजों को चार्जशीट के साथ संलग्न नहीं कर गायब कर दिए। दिव्य केंद्रीय कारागार उदयपुर में रहा, तब भी उसका सार्वजनिक चिकित्सालय में इलाज कराया गया। 6-7 बार इलाज के लिए मनोरोगी वार्ड में भी भेजा गया।
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वह 5 दिनों तक भर्ती भी रहा। प्रार्थना पत्र में बताया कि डॉक्टरों की दोबारा भर्ती करने की अनुशंसा करने पर पुलिस ने दबाव में आकर मना कर दिया। बार एसोसिएशन के दबाव में डॉक्टरों ने उसका समुचित इलाज भी नहीं किया। वर्तमान में दिव्य मानसिक अवसाद में है और कुछ सोचने-समझने में सक्षम नहीं है। समुचित इलाज के लिए चित्तौडगढ़़ केंद्रीय कारागृह अधीक्षक को निर्देश दें और मानसिक स्थिति ठीक होने तक अग्रिम कानूनी कार्रवाई स्थगित की जाए।
अभियोजन पक्ष ने ये दिए तर्क
– आरोपित का 9-10 माह से इलाज चलने का तथ्य बिल्कुल गलत है। न्यायालय में जो दस्तावेज पेश किए वे महज 13 दिन के इलाज के हैं।
– 23 जनवरी 2017 को मेडिकल बोर्ड ने ऐसी कोई राय नहीं दी कि वह विकृतचित्त है। अगर यह 9-10 माह से इलाजरत होता तो दस्तावेज, दवाइयों, न्यायालय में पेश करने से स्पष्ट हो जाता। पूर्व में भी जो इलाज हुआ, वह अवसाद का था।
– आरोपित ने इस प्रकरण में स्वेच्छा से पुलिस को हत्या और साक्ष्यों संबंध में जो सूचना दी, पुलिस ने उन्हीं स्थानों से जब्तियां की। इससे स्पष्ट होता है कि वह स्वस्थ एवं भला-बुरा समझने में सक्षम है।
– आरोपित सीए की पढ़ाई कर रहा था। आईपीसीसी के प्रथम ग्रुप नवंबर 2014 में 400 में से 261 अंक प्राप्त कर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ। तीन वर्ष के लिए आर्टिकलशिप के लिए रजिस्टर्ड भी हुआ, इसका मतलब उसकी मानसिक स्थिति स्वस्थ व कुशल थी।
– वारदात के बाद वह 15 बार न्यायालय में हाजिर हुआ। इसने कोई ऐसी टिप्पणी या ऑब्जर्वेशन विकृतचित्त के नहीं किए। उदयपुर में लगाए गए प्रार्थनापत्रों में अच्छे अधिवक्ता नियुक्त करने की गुहार की गई। जब मनमर्जी का अधिवक्ता नहीं मिला तो केस ट्रांसफर का प्रार्थना-पत्र लगाया। आरोपित की ओर से सोची-समझी साजिश के तहत प्रार्थना-पत्र पेश किया गया है जो न्यायसंगत ना होकर स्वीकार करने योग्य नहीं है।
– धारा 329 में स्पष्ट लिखा है कि न्यायालय मेडिकल द्वारा जो डायग्नोसिस होगा उस पर विचार कर आदेश पारित करें। इस प्रकरण में मेडिकल बोर्ड ने किसी तरह विकृत चित्त नहीं माना। आरोपी को पुलिसकर्मी व जेलकर्मियों ने कई बार न्यायालय में पेश किया। आज तक कभी उन्होंने मानसिक रोगी होने की शिकायत भी नहीं की।
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सुनवाई के बाद प्रार्थना पत्र खारिजन्यायालय की पीठासीन अधिकारी प्रभा शर्मा ने सुनवाई के दौरान माना कि आरोपित की उपस्थिति न्यायालय में न्यायिक अभिरक्षा से रहती है और उसके हावभाव व बोली चाली से उसकी कोई विकृत स्थिति नजर नहीं आती। उससे पूछे गए प्रश्नों को भी वह समझ कर सही जवाब देता है, ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि आरोपित विकृतचित हो और अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ हो। आरोपित की ओर से पेश प्रार्थना पत्र खारिज किया जाता है। सुनवाई के दौरान सरकारी अधिवक्ता के अलावा रुचिता का पति के.बी.गुप्ता न्यायालय परिसर में उपस्थित था।

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