ऑर्बिट अपार्टमेंट हाल मालदास स्ट्रीट निवासी दिव्य उर्फ किट्टू के पिता अरविंद कोठारी ने चित्तौडगढ़़ न्यायालय ने प्रार्थना-पत्र पेश कर बताया कि दिव्य के विरुद्ध हत्या का मामला विचाराधीन है। 9-10 माह से वह मानसिक अवसाद में होकर उपचाररत है। प्रकरण में अनुसंधान के दौरान पुलिस ने भी दिव्य की मानसिक स्थिति के संबंध में बयान दिए थे लेकिन अब पुलिस उसे विधिक लाभ से वंचित करने के लिए इलाज के दस्तावेजों को चार्जशीट के साथ संलग्न नहीं कर गायब कर दिए। दिव्य केंद्रीय कारागार उदयपुर में रहा, तब भी उसका सार्वजनिक चिकित्सालय में इलाज कराया गया। 6-7 बार इलाज के लिए मनोरोगी वार्ड में भी भेजा गया।
– आरोपित का 9-10 माह से इलाज चलने का तथ्य बिल्कुल गलत है। न्यायालय में जो दस्तावेज पेश किए वे महज 13 दिन के इलाज के हैं।
– 23 जनवरी 2017 को मेडिकल बोर्ड ने ऐसी कोई राय नहीं दी कि वह विकृतचित्त है। अगर यह 9-10 माह से इलाजरत होता तो दस्तावेज, दवाइयों, न्यायालय में पेश करने से स्पष्ट हो जाता। पूर्व में भी जो इलाज हुआ, वह अवसाद का था।
– आरोपित ने इस प्रकरण में स्वेच्छा से पुलिस को हत्या और साक्ष्यों संबंध में जो सूचना दी, पुलिस ने उन्हीं स्थानों से जब्तियां की। इससे स्पष्ट होता है कि वह स्वस्थ एवं भला-बुरा समझने में सक्षम है।
– आरोपित सीए की पढ़ाई कर रहा था। आईपीसीसी के प्रथम ग्रुप नवंबर 2014 में 400 में से 261 अंक प्राप्त कर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ। तीन वर्ष के लिए आर्टिकलशिप के लिए रजिस्टर्ड भी हुआ, इसका मतलब उसकी मानसिक स्थिति स्वस्थ व कुशल थी।
– वारदात के बाद वह 15 बार न्यायालय में हाजिर हुआ। इसने कोई ऐसी टिप्पणी या ऑब्जर्वेशन विकृतचित्त के नहीं किए। उदयपुर में लगाए गए प्रार्थनापत्रों में अच्छे अधिवक्ता नियुक्त करने की गुहार की गई। जब मनमर्जी का अधिवक्ता नहीं मिला तो केस ट्रांसफर का प्रार्थना-पत्र लगाया। आरोपित की ओर से सोची-समझी साजिश के तहत प्रार्थना-पत्र पेश किया गया है जो न्यायसंगत ना होकर स्वीकार करने योग्य नहीं है।
– धारा 329 में स्पष्ट लिखा है कि न्यायालय मेडिकल द्वारा जो डायग्नोसिस होगा उस पर विचार कर आदेश पारित करें। इस प्रकरण में मेडिकल बोर्ड ने किसी तरह विकृत चित्त नहीं माना। आरोपी को पुलिसकर्मी व जेलकर्मियों ने कई बार न्यायालय में पेश किया। आज तक कभी उन्होंने मानसिक रोगी होने की शिकायत भी नहीं की।