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उदयपुर

video: आने वाले बड़े ख़तरे का आइना है यू देखिए इसे….

.सात वर्ष में संभाग उगलने लगा चार गुना मेडिकल वेस्ट, इन्तजाम अधूरे
बायोमेडिकल प्लान्ट के कार्मिक नहीं सतर्क
– अभी छोटे क्लीनिक नहीं जुड़े प्लान्ट से

उदयपुरMay 22, 2019 / 10:10 am

Bhuvnesh

बायोमेडिकल प्लान्ट

बायोमेडिकल प्लान्ट

भुवनेश पण्ड्या

उदयपुर . उदयपुर संभाग सात वर्ष में चार गुना बायो मेडिकल वेस्ट उगलने लगा है। वर्ष २०१२-१३ में रोज करीब तीन सौ किलोग्राम बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण होता था, जो बढ़कर १२०० से १३०० किलोग्राम प्रतिदिन पर पहुंच गया है, लेकिन वेस्ट निस्तारण के लिए एकमात्र इंसीनरेटर लगा हुआ है। हालात ये है कि केवल बिजली उपभोग को कम रखने इंसीनरेटर की संख्या नहीं बढ़ाई जा रही है। एेसे में इस एक इंसीनेटर को १७-१७ घंटे चलाना पड़ रहा है। खास बात ये कि चित्तौडगढ़ और डूंगरपुर में दो प्लान्ट अंतिम चरणों में है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण मंडल बोर्ड के पेच में फंसे हैं, इसलिए ये शुरू नहीं हो पा रहे। डूंगरपुर का बनकर तैयार भी हो चुका है। बताया जा रहा है इटेक कंपनी भविष्य में इसे शुरू करेगी।
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उदयपुर में वर्ष २००५ में इस मेडिकल प्लान्ट की शुरुआत हुई थी। वर्तमान में सूरत की एन विजन कंपनी संभाग के सभी जिलों से बायोमेडिकल वेस्ट संग्रहित कर इसका निस्तारण कर रही है। उदयपुर शहर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौडग़ढ़, राजसमन्द व प्रतापगढ़ जिले के ४५० हॉस्पिटल प्लान्ट से जुड़े हैं, जबकि वर्ष २०१२ में करीब १७० हॅास्पिटल वेस्ट निस्तारण के लिए इस कंपनी से जुड़ चुके थे।- जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को भी इससे जोड़ रखा है। प्रति माह कंपनी को तीन से लेकर ढाई हजार रुपए प्रति केन्द्र के नाम पर भुगतान किया जाता है, जबकि महाराणा भूपाल हॉस्पिटल के साथ प्लान्ट जुड़ा हुआ है, इसलिए अनुबंध के आधार पर कम राशि ली जाती है। कुल बायोवेस्ट में से आधे से ज्यादा वेस्ट केवल उदयपुर शहर से निकलता है। पत्रिका टीम शनिवार को उमरड़ा स्थित बायोमेडिकल ट्रीटमेंट प्लान्ट पर पहुंची तो देखा कि वहां कार्यरत कार्मिक पूरी सावधानी नहीं बरत रहे हैं।
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संभाग के सभी बडे़ सरकारी व निजी हॉस्पिटल इस प्लान्ट से जुडे़ हुए है, कुछ छोटे-छोटे क्लीनिक हैं, उनके बायोमेडिकल वेस्ट का निस्तारण बेहतर तरीके से नहीं किया जाता।- मेडिकल वेस्ट लेने के लिए कंपनी ने उदयपुर शहर, चित्तौडग़ढ़ और बांसवाड़ा में दो-दो लोडिंग वाहन लगा रखे हैं, जबकि राजसमन्द, प्रतापगढ़ और सिरोही-माउंट आबू के लिए एक-एक वाहन चलाया जाता है। उदयपुर शहर से वेस्ट प्रतिदिन उठाया जाता है, जबकि अन्य जिलों में वेस्ट उठाने के लिए दो दिन में एक बार वाहन जाता है।
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प्रतिदिन १७ घंटे चलता है..

.इस भवन में इंसीनरेटर लगा हुआ है, जो बायोवेस्ट को जला देता है, यानी इसका निस्तारण करता है। स्थानीय सुपरवाइजर दलपतसिंह ने बताया कि वे मास्क इसलिए नहीं पहनते क्योंकि उन्हें अब गंध की आदत हो गई है। उन्हें बचाव के टीके भी लगे हैं। साथ ही वह भी सामान्य कपड़ों में दिखे, उन्होंने तय ड्रेस नहीं पहनी थी, संक्रमण से वे सावचेत नजर नहीं आए। कुछ साल पहले इंसीनरेटर को बायोवेस्ट की मात्रा देखते हुए मोडिफाइड किया है, लेकिन बिजली बचाने के लिए इसे एक ही रखा है। इंसीनरेटर को एेसे में १७-१७ घंटे चलाया जा रहा है। यहीं नहीं दूसरा इसलिए भी नहीं क्योंकि इंसीनरेटर की उम्र कम होती है। —–
अब होगी बार कोडिंगबायो मेडिकल वेस्ट थैलियों की जल्द ही बार कोडिंग शुरू होगी। इससे प्रत्येक अस्पताल में से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट की ऑनलाइन मॉनीटरिंग होगी। किस अस्पताल से कितना बायो वेस्ट निकला और कितना निकलना चाहिए था, इसका पूरा आकलन होगा। बायो वेस्ट को फेंकते मिले तो पकड़े जाने पर बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट और हैंडलिंग एक्ट 1998 संशोधित नियम 2016 में पांच साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मेडिकल बायो वेस्ट निस्तारण एक्ट 1998 में संशोधन कर नया कानून बनाया है। इसके तहत अब प्रत्येक अस्पताल और पैथोलॉजी लैब को प्रदूषण नियंत्रण मंडल से अपने संस्थान का पंजीयन करवाना ही होगा।प्लांटों के वाहनों में जीपीएस लगे हैं। इससे उनके बारे में सभी जानकारी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के पास जाएगी। बार कोडिंग से बोर्ड मुख्यालय के सॉफ्टवेयर में उसे भी अपडेट किया जा रहा है।
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यहां हॉस्पिटल पालन नहीं करते बायोवेस्ट रूल्स का…सुपरवाइजर सिंह ने बताया कि हॉस्पिटल यहां बायोवेस्ट रूल्स का पालन नहीं करते, वे बायोवेस्ट की तीन थैलियों में नियमानुसार वेस्ट नहीं डालकर दूसरा वेस्ट शामिल कर देते हैं, एेसे में कई प्रकार की परेशानी होती है। वेस्ट को समाप्त करने के दौरान दिक्कत आती है।ये है नियमपीली थैली: शीशी में पैक खराब दवाएं, खराब कटे हुए अंग, श्र्रूण, खून की थैलियां, मानवीय ऊतक को रखा जाता है।- सफेद प्लास्टिक पारदर्शी कंटेनर: अंग काटने व सिलने के उपकरण, सूइयां, सीरिंज, स्काल्पेस ब्लेड।- लाल थैली: बोतलें, सीरिंज, दस्ताने, टयूबिंग्स, कैथेटर, मूत्र की थैलियां, इंट्रावीनस ट्यूब।प्लान्ट के मुहाने पड़ा था वेस्टपत्रिका टीम जब प्लान्ट तक पहुंची तो कुछ बायोमेडिकल वेस्ट प्लान्ट से कुछ दूरी पर खुले में पड़ा था, इसकी जानकारी भी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों को दी गई।
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ये है खतरे – दो प्रकार के बायोमेडिकल वेस्ट होते हैं। इसमें सोलिड वेस्ट में कीचन या सड़क व वार्डों का कचरा शामिल हैं, साथ ही हेजाडर्ट वेस्ट जो खतरनाक होता है, इससे संक्रमण फैलने की आशंका रहती है। सामान्य पानी में इसके मिलने या जानवर के माध्यम से संक्रमण फैलता है। मक्खियों से भी खतरा रहता है। कचरा बीनने वाले बच्चे इससे संक्रमित हो सकते हैं। – हॉस्पिटल से निकले इंजेक्शन या शार्प नाइफ यदि यदि किसी को चुभ गया तो इससे लगने का खतरा तो रहता ही है, जिससे संक्रमण भी होता है।
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सभी पीएचसी व सीएचसी को इससे जोड़ दिया गया है, वहां से हर दूसरे दिन गाड़ी वेस्ट उठा लेती है। इसके लिए हम अनुबंध के आधार पर राशि जारी करते हैं।डॉ दिनेश खराड़ी, सीएमएचओ उदयपुरहमारा दायरा अब लगातार बढ़ रहा है, ज्यादातर हॉस्पिटल हमसे जुड़ चुके हैं, लेकिन कुछ छोटे क्लीनिक नहीं जुडे़ हैं। जब पूरा वेस्ट डिस्पोज हो जाता है, तब हाइपोक्लोराइड सोल्यूशन डालकर इंसीनरेटर व नीचे के फर्श को साफ किया जाता है। इंसीनरेटर की संख्या इसलिए नहीं बढ़ा रहे है क्योंकि चित्तौडग़ढ़ और डूंगरपुर के प्लान्ट प्रक्रिया में है, शुरू होते ही हमारा काम आधा हो जाएगा।
कौशलसिंह, अकाउन्टेंट एनविजन कंपनी

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