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उदयपुर

पाकिस्‍तान छोड़ भारत आए लेकिन आज भी पहचान पाक‍िस्‍तानी की, पढ़‍िए पाक विस्थापितों की कहानी

– पाक विस्थापितों की कहानी उनकी जुबानी से, उदयपुर के 55 और प्रदेश के 11हजार 525 पाक विस्थापितों को नहीं मिली नागरिकता

उदयपुरSep 25, 2019 / 02:00 pm

Bhuvnesh

परिंदे खुले आसमां के! हमें भी चाहिए अपनी माटी, अपना गगन

परिंदे खुले आसमां के! हमें भी चाहिए अपनी माटी, अपना गगन

भुवनेश पण्ड्या/उदयपुर. मुझे मेरे वतन भारत देश की माटी से बेहद प्यार है। यहां आते ही इस मिट्टी को मैंने चूमा था। यहां कि हवा ने भी मुझे ऐसे गले लगा लिया, जैसे एक मां उसके रोते हुए बच्चे को प्यार से पल्लू में दबा लेती है। हमारे देश भारत की सरजमीं को लेकर कुछ ऐसा ही मर्म था पाक विस्थापित एवं वर्तमान उदयपुर निवासी पवन कुमार चुघ की जुबानी में। वह कहते हैं कि वर्ष 2004 में पाकिस्तान के जेकोबाबाद को छोडक़र भारत आए थे। देश ने उन्हें तो नागरिकता दे दी, लेकिन पूरा परिवार आज भी नागरिकता के लिए भटक रहा है। पत्नी शकुन्तला की आज भी पहचान पाकिस्तानी के तौर पर है। परिवार की पीड़ा और पाकिस्तान के हालात बताते हुए पवन का गला रूंध आया। उसने कहा कि उसके बड़े भाई अंबरलाल, भाभी आराधना, भतीजे सुमित भी नागरिकता को मोहताज हैं। उन्होंने इस देश में आजादी है। अपनापन है। पाकिस्तान में तो आधी रात को कहीं जाने से पहले सोचना पड़ता था। स्थानीय प्रशासन की ओर से पवन के जन्म को 1947 से पहले का माना गया है। इसलिए उनके बच्चों को भी नागरिकता मिल जाएगी, लेकिन बाद वालों के लिए संकट है।
चार कोस में भी घबराहट
49 वर्षीय गोवद्र्धनदास 2011 में बलुचिस्तान से भारत आए थे। अब तक उन्हें भारतीय नागरिकता नहीं मिली हैं। हालत यह है कि वे उदयपुर से बाहर नहीं जा सकते। बकौल गोवद्र्धनदास पाकिस्तान में जो राम का नाम लेता है। उसे अलग नजरिए से देखा जाता है। यहां वे सब्जी मंडी में काम करते हैं। वे एक साथ 15 परिवार भारत आए थे। कुछ लोग दिल्ली रुक गए, तो कुछ परिवार यहां आकर बस गए। उनका कहना है कि वे जब भी यहां प्रशासन के पास जाते हैं, तो उन्हें ये कहकर भेज देते है कि उन्हें नागरिकता बाद में मिलेगी। 20 किलोमीटर भी बाहर जाते हैं तो पुलिस का डर बना रहता है।
घिस गई चप्पलें

पाकिस्तान के मस्तूंग बलूचिस्तान से 15 वर्ष पूर्व उदयपुर आकर बसे जयपालदास को कुछ समय पहले ही भारतीय नागरिकता मिली है। उन्होंने कहा कि ये नागरिकता उन्हें सात साल में मिलनी थी। नागरिकता प्राप्त करने के लिए उन्हें एड़ी से चोटी तक प्रयास करने पड़े। कार्यालयों के चक्कर खाकर चप्पले घिसनी पड़ी। उन्होंने भावुक होकर कहा कि ये देश हमारे जहन में है। उनका तो ननिहाल और ससुराल ही भारत में थे। यहां आकर वे उनकी बेटी को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे पीडि़त लोगों की प्राथमिकता से सुने और नागरिकता दे। अभी तो हर दो वर्ष बाद वीजा अवधि बढ़ा देते हैं। ऐसे में उदयपुर से बाहर जाना तक मुमकीन नहीं है। ना यहां कोई सम्पत्ति खरीद सकते हैं। मजहब से बड़ा इंसान है। यहां और वहां केवल धर्म का अन्तर है। बाकी सब एक जैसा है।
पीछे छूटे दोस्त, अलग खुशी
28 वर्षीय सनी बागजाई, पाक के जेकमाबाद स्थित अल मुस्तफा स्कूल में आठवीं में पढ़ते थे। इसके बाद वह जब भारत आए तो उन्हें दोस्तों से बिछडऩा पड़ा। उन्हें पाक से यहां आए 11 वर्ष हो गए। अब तक नागरिकता नहीं मिली। भारत आकर उन्हें पढ़ाई छोडऩी पड़ी। काम धंधे में लगना पड़ा। वह यहां कपड़े की दुकान पर काम कर रहे हैं। उनकी मां नानकी को नागरिकता मिली है, लेकिन पिता लखुमन और भाई विनोद और उन्हें नागरिकता का इंतजार है।
आंकड़ों की हकीकत

गौरतलब है कि राजस्थान प्रदेश में कुल 17 हजार 652 पाक विस्थापित हैं। इनमें से कई तो 50 साल से अधिक समय से रह रहे हैं। इनमें से 6 हजार 127 नागरिक ऐसे हैं जो अधिनियम 1955 के तहत नागरिकता प्राप्त करने की पात्रता रखते हैं। ये सभी पाक विस्थापित विदेशी पंजीकरण कार्यालयों में पंजीकृत हैं। पाक नागरिक विदेशी पंजीयन कार्यालय में पंजीकरण को लेकर आवेदन करता है तो उसका नियमानुसार पंजीकरण कर एलटीवी प्रस्ताव राज्य सरकार के माध्यम से गृह मंत्रालय, भारत सरकार को प्रेषित कर दिया जाता है।
जिले वार भारतीय नागरिकता के पात्र

जिला…. संख्या

उदयपुर…. 91

जयपुर…. 228

श्रीगंगानगर….316

बीकानेर…. 90

अजमेर…. 17

सिरोही…. 62

अलवर… 04

भीलवाड़ा…. 16

हनुमानगढ़…. 01
टोंक…. 01

सीकर…. 06

नागौर…. 07

जालोर ….72

जोधपुर… 4940

पाली …98

कोटा …22

बाड़मेर …63

जैसलमेर …93

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कुल 6127

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