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सिनेमाघरों में बाहर से लाने पर पाबंदी, अंदर खरीदो तो जेब ढीली

-हाल ही मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से एक जनहित याचिका पर जवाब तलब किया है।

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Theater in udaipur

उदयपुर . हाल ही मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से एक जनहित याचिका पर जवाब तलब किया है। न्यायालय ने पूछा है कि दर्शकों को सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में ही बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थ क्यों खरीदने चाहिए? बाहर से खाद्य पदार्थ लाने पर क्यों पाबंदी है? इस बारे में जब उदयपुर के सिनेमाघरों व मल्टीप्लेक्सेस में स्थिति जांची गई तो यहां भी एेसे ही हालात मिले।

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बाहर का कोई भी खाद्य पदार्थ या पीने का पानी तक मल्टीप्लेक्स में नहीं ले जाया जा सकता है। यहां अगर खाने-पीने की चीजें ऑर्डर करेंगे तो ये बाजार से चार से पांच गुना ज्यादा दामों पर उपलब्ध होती हैं। ऐसे में फिल्म देखने जा रहे लोगों की जेब पर सिनेमा हॉल की कैंटीनेंं जमकर जेब ढीली कर रही हैं।

मनमानी : बाजार से ज्यादा दामों पर बेची जा रही वस्तुएं
जो बर्गर या पेटीज बाजार में ३0-४0 रुपए में मिल जाते हैं, सिनेमाघर में इनके 1०० से 1५० रुपए तक देने पड़ते हैं। चाय या कॉफी भी ३0-४0 रुपए से कम की नहीं पड़ती। यहां तक कि स्मॉल या मीडियम साइज पॉपकॉर्न के दाम भी 1०0 से 200 रुपए तक होते हैं। ऐसे में अगर चार लोगों की फैमिली कोई फिल्म देखने गई है और उन्होंने वहां थोड़ी पेट पूजा भी की हो, तो एक-डेढ़ हजार रुपए इसमें खर्च हो जाते हैं।

दरअसल शहर के केवल एक नहीं बल्कि लगभग सभी मल्टीप्लेक्स में पॉपकॉर्न समेत दूसरी खाने-पीने वाली चीजें टिकट के दाम से ज्यादा महंगी मिल रही हैं। खुले प्रोडक्ट पर अधिकतम खुदरा मूल्य नहीं होता इसलिए शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं होती। कुछ मामले ऐसे भी हैं जिनमें मल्टीप्लेक्स, मॉल में बिकने वाले प्रोडक्ट्स पर ज्यादा बिक्री मूल्य डाला गया है। यानी एक ही प्रोडक्ट पर दो तरह की कीमत डाली जा रही है। इस बारे में लोगों का कहना है कि उन्हें मल्टीप्लेक्स में कोई भी खाने-पीने का सामान नहीं ले जाने दिया जाता और वे जब वहीं से सामान खरीदते हैं तो इस पर ज्यादा दाम वसूले जाते हैं। सिनेमा देखकर निकले गौरव पंवार का कहना है कि एमआरपी से ज्यादा कीमत पर जो चीजें बेचते हैं वो गलत है।

सिनेमाघर संचालकों का तर्क
इस बारे में अशोका सिनेमा के मुकुंद सिंघवी कहते हैं, सरकार ने सिनेमाघरों को रेस्टोरेंट व होटल्स कैटेगरी में डाल रखा है और उसके लिए रजिस्ट्रेशन कराना होता है। हमने रेस्टोरेंट का लाइसेंस ले रखा है और उसी अनुसार रेट्स तय करके डिस्प्ले कर रखी हैं। वे लोगों से किसी भी पैक्ड फूड का पैसा एमआरपी से ज्यादा नहीं वसूलते। पानी की बोतलों पर एमआरपी है और उसी अनुसार उसका चार्ज लिया जाता है। इसी तरह मैनेजर शेर आलम का कहना है कि उनके यहां पैक्ड फूड्स एमआरपी पर ही बेचे जा रहे हैं। इस बारे में जब शहर के मल्टीप्लेक्स संचालकों से संपर्क साधा तो उन्होंने अपने हैडऑफिस से बिना परमिशन कोई भी बात ना कहने की मजबूरी बता दी।

सवाल : किस आधार पर रोक रहे
लोगों का सवाल है कि अगर कोई अपने साथ अपना खाना या पानी सिनेमा हॉल में ले जाना चाहे तो उसे किस आधार पर रोका जा रहा है? बच्चों, बुजुर्गों और कोई किसी तरह का एलर्जिक या बीमार हो तो उनके लिए भी सुविधा नहीं है। ऐसे में ये किस कानून के आधार पर हो रहा है।

कर सकते हैं उपभोक्ता मंच में शिकायत
&किसी भी वस्तु पर तय एमआरपी से ज्यादा राशि नहीं ली जा सकती है। यदि कोई ऐसा करता है तो उसके खिलाफ उपभोक्ता मंच में शिकायत की जा सकती है। जहां तक पानी का सवाल है तो पानी ले जाने पर रोक लगाना गलत है।

-सुशील कोठारी ,वरिष्ठ अधिवक्ता व स्थायी लोक अदालत के सदस्य