— यह था मामला
परिवादी नासिर मोहम्मद का कहना था कि उसने विभाग की तयशुदा संविदा के मुताबिक भरोसा करके 28 मार्च, 2018 को एक मुश्त 19205 जमा करवाए। इसके बाद पता चला कि विपक्षी को वास्तविक देय राशि 11036 रुपए ही थी, जबकि विपक्षी ने 8169 अधिक प्राप्त कर लिए। इस संबंध में पत्र व्यवहार करने पर विपक्षी को अतिरिक्त राशि जमा होना व उपभोक्ता को पुन: भुगतान योग्य होना स्वीकार किया। इस संबंध में विपक्षी के अधिशाषी अभियंता के हस्ताक्षर से एक पत्र भी जारी किया गया। सुनवाई के बाद विपक्षी ने उक्त राशि वास्तविक बकाया से अधिक प्राप्त किए जाना व रिफंड योग्य स्वीकार किया लेकिन विभाग ने परिवादी को यह राशि नहीं दी। न्यायालय में आवेदन व नोटिस के बावजूद विपक्षी ने 84 वर्षीय परिवादी को स्वीकृत रिफंड योग्य राशि का भुगतान नहीं कर घोर उपेक्षा व शिथिलता बरती।