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उदयपुर

झूले दिए उधार, कमाई कर भाग गया ठेकेदार, न्यायालय से भी नहीं मिली राहत

 
निगम का अनुबंध ठेकेदार से, मालिक की याचिका खारिज
स्लग… उधारी के झूलों से की कमाई का मामला

उदयपुरDec 24, 2018 / 09:48 pm

Mohammed illiyas

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झूले दिए उधार, कमाई कर भाग गया ठेकेदार, न्यायालय से भी नहीं मिली राहत


निगम का अनुबंध ठेकेदार से, मालिक की याचिका खारिज

स्लग… उधारी के झूलों से की कमाई का मामला

उदयपुर . पैसा वसूली के लिए नगर निगम की ओर से ठेकेदार के रोके गए उधारी के झूलों को लेकर उसके मालिक की ओर से दायर अस्थायी निषेधाज्ञा के अंतरिम प्रार्थना पत्र को न्यायालय ने खारिज कर दिया। सिविल न्यायालय ने निर्णय में लिखा कि झूला मालिक का निगम से कोई करार ही नहीं हुआ।
बजरंग नगर इंदौर हाल अहिंसापुरी फतहपुरा निवासी रिगल कुमार पुत्र विनयचंद जैन ने नगर निगम आयुक्त व खाटूटी अजमेर निवासी सैफ गफ्फार पुत्र शकूर खां के खिलाफ अस्थायी निषेधाज्ञा का प्रार्थना पत्र पेश किया। इसमें बताया कि टाउन हॉल में 28 अक्टूबर से 11 नवम्बर तक दीपावली मेले के लिए नगर निगम ने सैफ गफ्फार खां को 38.20 लाख रुपए में झूलों को ठेका दिया था। शर्त के अनुसार उसने 9.55 लाख की अग्रिम राशि जमा करवा दी तथा बकाया राशि के चेक दे दिए। शर्तों के अनुसार परिवादी के पास महज एक मौत का कुआं ही था, उसने पांच झूले परिवादी से प्रतिदिन आय के 40 फीसदी राशि में उधार लिए। गफ्फार खां ने परिवादी से लिए पांच झूले लगाते हुए पांच दिन की राशि अदा की। बाद के दिनों की राशि अदा नहीं करने पर परिवादी ने सूरजपोल थाने में इसकी शिकायत भी की। थाने में दोनों पक्षों की बीच राजीनामा हुआ लेकिन राशि खां ने राशि अदा नहीं की। मेला समाप्ति के बाद गफ्फार खां गायब हो गया। परिवादी अपने स्तर पर टाउन हॉल परिसर से झूले खोलने गया तो निगम ने उसे ले जाने मना कर दिया। पता चला कि गफ्फार ने जो निगम को चेक दिए थे, वे अनादरित हो गए। निगम ने पैसा नहीं मिलने पर झूले नहीं ले जाने दिए।
परिवादी का कहना है कि निगम का ठेकेदार गफ्फार के बीच पैसों का विवाद है, जिससे उसका कोई लेना-देना नहीं है। यदि समय पर उसे झूले नहीं मिले तो उसे भारी क्षति हो जाएगी। यह झूले उसे बेलगांव कर्नाटक मेले में लगाने हैं। परिवादी ने न्यायालय ने निगम को अस्थायी निषेधाज्ञा से पाबंद करने की मांग की कि वह मेला ग्राउंड में लगे हुए झूले खोलने में किसी तरह कोई बाधा उत्पन्न नहीं करे, ना ही किसी तरह की रोक-टोक करे।
प्रार्थना पत्र पर निगम के अधिवक्ता अशोक सिंघवी ने विरोध किया। उन्होंने कहा कि ठेकेदार ने निगम को 38.20 लाख रुपए जीएसटी सहित भुगतान करना था लेकिन उसने नहीं किया। परिवादी का निगम से कोई अनुबंध नहीं था। न्यायालय ने सुनवाई के बाद माना कि प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया।

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