रत्नू: ऐसे आयोजनों के माध्यम से सामूहिक साझा बौद्धिक सम्पदा को आगे बढ़ाने का लक्ष्य है। हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी काम करती है। जैसे हमारे कारीगर, वास्तुकला, पेंटर्स, खाद्य पदार्थ, कृषि उत्पाद, हस्तशिल्प संजोए हुए है। जीआई कानून के तहत वल्र्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन से एग्रिमेंट किया है। जीआई के जो उत्पाद है उसके लिए कानूनी ढांचा तैयार करेंगे, जिससे ऐसे लोग जीआई उत्पादों में अपना पंजीयन कर सकेंगे और उन पर उनका नाम होगा।
पत्रिका: जीआई, पेटेंट डिजाइंस एंड ट्रेड मार्क के बारे में कुछ बताइए ? रत्नू: हमारा रजिस्ट्री का मुख्य कार्यालय चेन्नई में है, रिजनल ऑफिस मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता में है। जिनमें शिक्षा का स्तर अच्छा होता है वह ज्योग्राफिकल इंडिकेशन को कैसे फाइल करना है वह समझते हैं। जॉब और रिसर्च से जुड़े लोग, औद्योगिक घरानों से जुड़े शोधकर्ता या विद्यार्थी जीआई फाइल कर लेते हैं, लेकिन ऐसे कलाकार, कारीगर ये समझ नहींं पाते।
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रत्नू: राजस्थान से नई एप्लीकेशन नहीं आ रही है, राजस्थान से अब तक 11 उत्पादों और लोगो, जीआई में पंजीकृत किए गए है। राजस्थान में अपाार संभावनाएं है।
पत्रिका: केन्द्र सरकार कितना सहयोग कर रहे है ? रत्नू: ऐसे आयोजन के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय पूरी गंभीरता से समय-समय पर निर्देश दे रहा है। एमएसएमइ मंत्रालय पंजीयन के लिए दो लाख रुपए अनुदान दे रहा है। लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी, जहां आइएएस ऑफिसर्स को प्रशिक्षण दिया जाता है, उनमें भी इसकी गंभीरता बताई जा रही है। हर प्रोबेशनर्स को यह असाइनमेंट दिया गया है कि वह अपने-अपने जिले में एक-एक जीआई उत्पाद का पंजीयन करवाए।
पत्रिका: जीआई व पेटेंट में क्या अन्तर है ? रत्नू: जीआई साझा बोद्धिक सम्पदा है, पेटेंट व्यक्तिगत होता है। जीआई बढ़ेगा तो अपने यहां की विशेष विधाएं पूरी दुनिया समझेगी।