तरल दवा की खपत के अनुमानित आंकड़ों पर गौर करें तो मोड़ी गांव में प्रतिदिन400 खांसी की सिरप खुले में बिक रही है। मामले की पड़ताल पर सामने आया कि ये दवाएं मेडिकल स्टोर पर बिना किसी परामर्श पर्ची के उपलब्ध है। किराने की दुकानों पर भी लेबल हटाकर इन दवाओं को एक सौ रुपए प्रति शीशी बेचा जा रहा है।
क्षेत्रभर में नशामुक्ति के क्षेत्र में कई संगठन काम कर रहे हैं। बावजूद इसके संगठन और संबंधित अधिकारी उदयपुर ग्रामीण में जहर की तरह फैल रहे नशे को लेकर मूकदर्शक बने हुए हैं। नियमानुसार बिना परामर्श पर्ची के इन दवाओं को बेचना मना है। शिड्युल एचवन के मुताबिक परामर्श देने वाले चिकित्सक और दवा विक्रेता को तीन वर्ष का डाटा रखना होता है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से लागू शिड्युल एनडीपीएस नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंसेज 1985 एक्ट के तहत कुछ दवाओं को बिना परामर्श पर्ची के देना प्रतिबंधित है।
नशे के आदतन हो चुके किशोर व युवा वर्ग की स्थिति यह है कि वह पूरे दिन नशे के शौक को पूरा करने के लिए दवा जुटाने की व्यवस्था में लगे रहते हैं। कार्य क्षमता बढ़ाने और तनाव घटाने के नाम पर युवा इस नशे को करते हैं। उत्सुकता, जिज्ञासा, अकेलापन, तनाव, खेलकूद, पढ़ाई आदि में अरुचि, भूख न लगना, शरीर कमजोर होना, बदन कांपना, आंखें लाल रहना, जुबान लडख़ड़ाना, रात को नींद न आना, चिड़चिड़ापन, चोरी व झूठ बोलने की आदत पडऩा, स्मरण शक्ति कमजोर इस नशे के लक्षण हैं।
तरल दवा की खाली बोतलें कई जगहों पर दिखती हैं। मेडिकल स्टोर में अवैध तौर पर बिकने वाली दवाओं पर विभाग की सख्ती के बाद असर दिखा भी सही, लेकिन अब चोरी छिपे दवा बेचने की शिकायतें मिल रही हैं। कुछ युवा बाहर से भी खरीदकर लाते हैं।
डॉ. नेत्रपाल सिंह
चिकित्साधिकारी, राजकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, मोड़ी
डॉ. महेंद्र लौहार, ब्लॉक मुख्य चिकित्साधिकारी, भींडर- वल्लभनगर